Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-2-7 (460) 287 III सूत्रार्थ : साधु अथवा साध्वी व्यामानुग्राम विहार करता हुआ उसके मार्ग में यदि कोई सामने से पथिक आ जाए और साधु से पूछे कि- आयुष्मन् श्रमण ! यह ग्राम यावत् राजधानी कैसी है ? यहां पर कितने घोडे, हाथी और ग्राम याचक हैं, तथा कितने मनुष्य निवास करते हैं ? क्या इस व्याम यावत् राजधानी में अन्न, पानी, मनुष्य एवं धान्य बहुत है या थोड़ा है ? ऐसे प्रश्नों को पूछने पर साधु जवाब न देवे औ उसके बिना पूछे भी ऐसी बातें न करे। परन्तु, वह मौन भाव से विहार करता रहे और सदा संयम साधना में संलग्न रहे। IV टीका-अनुवाद : विहारानुक्रम से एक गांव से दुसरे गांव की और जाते हुए उन साधुओं को मार्ग में मुसाफिर सामने मिले और वे पुछे कि- हे श्रमण ! यह गांव कैसा है ? इत्यादि पुछने पर या बिना पुछे उन्हें कुछ भी न कहें... तथा साधु उन मुसाफरों को भी ऐसे प्रश्न न करें... यह इस सूत्र का पिंडार्थ (संक्षिप्त अर्थ) है... और यह हि साधु का संपूर्ण साधुपना है... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- विहार करते समय रास्ते में यदि कोई पथिक मुनि से.पछे कि- जिस गांव या शहर से तम आ रहे हो उसमें कितने हाथी-घोडे हैं. कितना है, कितने मनुष्य हैं अर्थात् वह गांव धन-धान्य से सम्पन्न है या अभाव ग्रस्त है ? तब मुनि को इसका कोई उत्तर नहीं देना चहिए। क्योंकि, इस चर्चा से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है और न यह चर्चा आत्म विकास में ही सहायक है। यह तो एक तरह की विकथा है, जो आध्यात्मिकं प्रगति में बाधक मानी गई है। इसलिए साध को उस समय मौन रहना चाहिए। यदि पूछने वाला कोई आध्यात्मिक साधक हो और उससे आध्यात्मिक विचारों के प्रसार होने की सम्भावना हो तो साधु के लिए उक्त प्रश्नों का उत्तर देने का निषेध नहीं है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यह प्रतिबन्ध इस लिए लगाया गया है कि केवल व्यर्थ की बातों में साधक का समय नष्ट न हों। कुछ हस्त लिखित प्रतियों में “अप्पजवसे' पद के आगे यह पाठ मिलता है“एयप्पगाराणि पसिणाणि पुट्ठो वा अपुट्ठो वा नो आइक्रोज्जा, एयप्पगाराणि पसिणाणि नो पुच्छेज्जा।" . प्रस्तुत सूत्र से यह भी स्पष्ट होता है कि उस युग में हाथी-घोड़ों का अधिक उपयोग होता था और उन्हीं के आधार पर गांव के वैभव का अनुमान लगाया जाता था। इस कारण प्रश्नों की पंक्ति में सब से पहले उनका उल्लेख किया गया है।