Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 472 2-3-2 (510) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन पुर संनिवेश से, उत्तर क्षत्रिय कुण्ड पुर सन्निवेश में ज्ञातवंशीय क्षत्रियों में प्रसिद्ध काश्यपगोत्री सिद्धार्थ राजा की वासिष्ठ गोत्र वाली पत्नी त्रिशला महाराणी के अशुभपुद्गलों को दूर करके उनके स्थान में शुभ पुद्गलों का प्रक्षेपण करके उसकी कुक्षि में गर्भ को रखा, और जो त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षी में गर्भ था उसको दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर सन्निवेश में जाकर कोडालगोत्रीय ऋषभ दत्त ब्राह्मण की जालन्धर गोत्रवाली देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षी में स्थापित किया। हे आयुष्मन् श्रमणो ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी गर्भावास में तीन ज्ञान, मति श्रुत अवधि-से युक्त थे। मैं इस स्थान से संहरण किया जाऊंगा, और मैं संहृत किया जा चुका हूं। यह सब जानते थे। किंतु संहरण काल नहि जानतें थे..... उस काल और उस समय में त्रिशला क्षत्रियाणी ने जब नव मास साढ़े सात अहोरात्र के व्यतीत होने पर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास के द्वितीय पक्ष में अर्थात् चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर श्रमण भगवान महावीर को सुख पूर्वक जन्म दिया। जिस रात्रि में रोग रहित त्रिशला क्षत्रियाणी ने रोग रहित श्रमण भगवान महावीर को जन्म दिया उस रात्रि में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों और देवियों के स्वर्ग से आने और मेरुपर्वत पर जाने से एक महान तथा प्रधान देवोद्योत और देव सन्निपात के कारण महान कोलाहल और मध्य एवं उर्ध्व लोक में उद्योत हो रहा था।' जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने श्रमण भगवान महावीर को जन्म दिया, उसी रात्रि में बहुत से देव और देवियों ने अमृत, सुगन्धित पदार्थ, चूर्ण, चान्दी, स्वर्ण और रत्नों की बहुत भारी वर्षा की। जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने श्रमण भगवान महावीर को जन्म दिया, उसी रात्रि में भवन पति, वाणव्यन्तर ज्योतिषी और वैमानिक देव और देवियों ने श्रमण भगवान महावीर का शुचि कर्म और तीर्थंकराभिषेक किया। जिस रात को श्रमण भगवान महावीर त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्ष में आए उसी समय से उस ज्ञातवंशीय क्षत्रिय कुल में हिरण्यचांदी, स्वर्ण, धन, धान्य, माणिक, मोती, शंखशिला और प्रवालादि की अभिवृद्धि होने लगी। श्रमण भगवान महावीर के जन्म के ग्यारहवें दिन शुद्धि हो जाने पर उनके माता पिता ने विपुल अशन, पान, खादिम, और स्वादिम पदार्थ बनवाए और अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन और सम्बन्धि वर्ग को निमंत्रित किया और बहुत से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, कृपण, वनीपक तथा अन्य तापसादि भिक्षुओं को भोजनादि, पदार्थ दिए अपने