Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-2-2-2-1 (498) 413 आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 2 अध्ययन - 2 सप्तैकक: - 2 // निषीधिका प्रथम सप्तैकक (अध्ययन) के बाद अब दूसरा अध्ययन कहतें हैं... यहां परस्पर यह अभिसंबंध है कि- प्रथम अध्ययन में स्थान की बात कही, अब वह स्थान कैसा हो तो स्वाध्याय के योग्य हो ? और उस स्वाध्याय-भूमि में क्या करना चाहिये और क्या न करें इत्यादि बात के संबंध से यह दूसरा निषीधिका नाम का अध्ययन आया है... इसके उपक्रमादि चार अनुयोग द्वार है... उनमें भी नाम निष्पन्न निक्षेप में निषीधिका यह नाम है, उसके नाम-स्थापना-द्रव्यक्षेत्र-काल एवं भाव ऐसे छह (6) निक्षेप होतें हैं... उनमें नाम एवं स्थापना निक्षेप सुगम है... अब नोआगम से द्रव्य निषीधिका के तीन भेद हैं 1. ज्ञ शरीर, 2. भव्य शरीर, 3. तद्व्यतिरिक्त... उनमें भी जो प्रच्छन्न द्रव्य वह नोआगम से तद्व्यतिरिक्त द्रव्य निषीधिका है... . तथा क्षेत्र निषीधिका-ब्रह्मदेवलोक के रिष्ट नाम के विमान के पास में रही हुई कृष्णराजी... या जिस क्षेत्र में निषीधिका का व्याख्यान किया जाय वह क्षेत्रनिषीधिका है... तथा कृष्णराजी जिस काल में हो या जिस काल में निषीधिका का व्याख्यान किया जाय वह काल निषीधिका है... तथा नोआगम से भाव निषीधिका यह निषीधिका नाम का अध्ययन ही है, क्योंकियह अध्ययन आगम-ग्रंथ के एक भाग स्वरुप है... नाम निष्पन्न निक्षेप पूर्ण हुआ, अब सूत्रानुगम में आये हुए सूत्र का शुद्ध उच्चारण करना चाहिये- और वह सूत्र इस प्रकार है... I सूत्र // 1 // // 498 // से भिक्खू वा, अभिकंखिज्जा निसीहियं फासुयं गमणाए, से पुण निसीहियं जाणिज्जा- सअंडं तह० अफासुयं० नो चेइस्सामि / से भिक्खू० अभिकंखेज्जा निसीहियं गमणाए, से पुण निसीहियं० अप्पपाणं