Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 234 2-1-2-3-15 (435) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन है और यदि कोई गृहस्थ उसे उस तरह के तृण का आमंत्रण करे तब भी वह उसे ग्रहण कर सकता है। यह प्रथम प्रतिमा हुई। अब दूसरी एवं तीसरी प्रतिमा का वर्णन करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 15 // // 435 // अहावरा दुच्चा पडिमा- से भिक्खू वा० पेहाए संथारगं जाइज्जा, तं जहागाहावई वा कम्मकरिं वा से पुव्वामेव आलोइज्जा- आउ० ! भइ० ! दाहिसि मे ? जाव पडिगाहिज्जा, दुच्चा पडिमा | // 2 // अहावरा तच्चा पडिमा- से भिक्खू वा० जस्सुवस्सए संवसिज्जा, जे तत्थ अहासमण्णागए, तं जहा-इक्कडेइ वा जाव पलालेड़ वा, तस्स लाभे संवसिज्जा, तस्साऽलाभे उक्कुडुए वा नेसज्जिए वा विहरिज्जा, तच्चा पडिमा || 3 || II संस्कृत-छाया : अथाऽपरा द्वितीया प्रतिमा - स: भिक्षुः वाo प्रेक्ष्य संस्तारकं याचेत, तद्यथागृहपतिं वा कर्मकरी वा सः पूर्वमेव आलोकयेत्- हे आयुष्मन् ! हे भगिनि ! दास्यसि मह्यं ? यावत् प्रतिगृह्णीयात्, द्वितीया प्रतिमा // 2 // अथाऽपरा तृतीया प्रतिमा- सः भिक्षुः वा० यस्य उपाश्रये संवसेत्, ये तत्र अथ समन्वागताः तद्यथा- इक्कडः वा यावत् पलाल: वा तस्य लाभे सति संवसेत्, तस्य अलाभे सति उत्कटुक: वा नैषधिकः वा विहरेत्, तृतीया प्रतिमा // 3 // III सूत्रार्थ : द्वितीया प्रतिमा यह है कि साधु या साध्वी गृहपति आदि के परिवार में रखे हुए संस्तारक को देखकर उस की याचना करे- यथा हे आयुष्मन् ! गृहस्थ ! अथवा बहन ! क्या तुम मुझे इन संस्तारकों में से अमुक संस्तारक देओं ? तब यदि निर्दोष और प्रासुक संस्तारक मिले तो उसे लेकर वे संयम साधना में संलग्न रहे। तृतीया प्रतिमा यह है कि- साधु जिस उपाश्रय में रहना चाहता है यदि उसी उपाश्रय में संस्तारक विद्यमान हो तो गृहस्वामी की आज्ञा लेकर संस्तारक को स्वीकार करके विचरे, यदि उपाश्रय में संस्तारक विद्यमान नहीं है तो वह उत्कुटुक आसन, पद्मासन आदि आसनों के द्वारा रात्रि व्यतीत करे।