Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-5-1-5 (479) 345 तथा अंशुक, चीनांशुक इत्यादि भिन्न भिन्न देशों में प्रसिद्ध नामवाले वस्त्र... कि- जो वस्त्र बहोत सारे धन-मूल्यवाले प्राप्त हो तो भी ऐहिक याने इस जन्म के एवं आमुष्मिक याने जन्मांतर के अपाय याने दुःख-उपद्रवों के भयसे साधु ग्रहण न करें... वह साधु या साध्वीजी म. जब जाने कि- यह वस्र अजिन याने चर्म से बने हुए है... जैसे कि- उद्र याने सिंधु देश की मच्छलीयां, उनके सूक्ष्म चर्म से बने वस्त्र... उद्र... तथा पेस याने सिंधु देश के हि सूक्ष्म चर्मवाले पशुओं के चर्म से बने हुए वस्त्र... तथा पेशल याने चर्म के सूक्ष्म पक्ष्म याने रुवांटी (रोम) से बने वस्त्र... तथा काले मृग के चर्म से बने हुए, नील मृग के चर्म से बने हुए, कौरमृग के चर्म से बने हुए वस्त्र, तथा कनक रसवाले, कनक की कांतिवाले तथा कनक याने सोने के पट्टेवाले तथा सुवर्णजडित चर्म- वस्त्र, तथा वाघ के चर्म से बने वस्त्र, तथा वाघ के चर्म के विभिन्न आभरणवाले वस्त्र तथा आभरणवाले वस्त्र, और आभरणो के विभिन्न प्रकार से विभूषित वस्त्र, ऐसे और भी चर्म से बने वस्त्र प्राप्त हो तो भी साधु ग्रहण न करें... .. अब वस्त्र के ग्रहण करने के अभिग्रहों के विषय में कहतें हैं... सूत्रसार : v प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को देश या विदेश में बने हुए विशिष्ट रेशम, सूत, चर्म एवं रोमों के बहुमूल्य वस्त्रों को ग्रहण नहीं करना चाहिए। ऐसे कीमती वस्त्रों को देखकर चोरों के मन में दुर्भाव पैदा हो सकता है और साधु के मन में भी ममत्व भाव हो सकता है। चर्म एवं मुलायम रोमों के वस्त्र के लिए पशुओं की हिंसा भी होती है। अतः पूर्ण अहिंसक साधु के लिए ऐसे कीमती एवं महारम्भ से बने वस्त्र व्याह्य नहीं हो सकते। इसलिए भगवान ने साधु के लिए ऐसे वस्त्र ग्रहण करने का निषेध किया है। प्रस्तुत सूत्र से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय एवं सीमा के निकट के देशों में वस्त्र उद्योग काफी उन्नति पर था और उस समय आज के युग से भी अधिक सुन्दर और टिकाऊ वस्त्र बनता था। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि उस युग में भारत आज से अधिक खुशहाल था। उसका व्यापारिक व्यवसाय अधिक व्यापक था। चीन एवं उसके निकटवर्ती देशों से वस्त्र का आयात एवं निर्यात होता रहता था। इससे यह स्पष्ट जानकारी मिलती है कि उस युग में शिल्पकला विकास की चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी और जनता का जीवनस्तर काफी उन्नत था। भारत में गरीबी. भुखमरी एवं वस्तुओं का अभाव कम था और अन्य देशों के साथ भारत के व्यापारिक सम्बन्ध भी काफी अच्छे थे। उस युग के भारतीय औद्योगिक, व्यवसायिक एवं व्यापारिक इतिहास की शोध करने वाले इतिहास वेत्ताओं के लिए प्रस्तुत सूत्र बहुत ही महत्वपूर्ण है।