Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-1-2 (455) 275 स्थविर कल्पवाला हो या गच्छनिर्गत याने जिनकल्पवाला हो, वह साधु तत्काल असार वस्त्रों को शरीर से दूर करे और सारभूत वस्त्रादि को शरीर के साथ बांध ले... या माथे पे बांध दे, जिससे बांधे हुए उन उपकरणों से व्याकुलता रहित जल को तैर शके... या धर्मकथा के द्वारा उन गृहस्थों को अनुकूल करे... शेष सूत्र सुगम है.. अब जल में तैरते हुए साधु को क्या करना चाहिये... वह विधि आगे के सूत्र से कहतें हैं. v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में साधु को हर परिस्थिति में समभाव बनाए रखने का आदेश दिया गया है। साधु का आदर्श ही यह है कि दुःखों की तपती हुई दोपहरी में भी समभाव की जलधारा को न सूखने दे। जैसे कि- अपने आदेश का पालन होते हुए न देखकर यदि कोई नाविक उसे नदी की धारा में फैंकने की योजना बनाए और साधु उसे सुन ले तो उस समय साधु उस पर क्रोध न करे और न उसका अनिष्ट करने का प्रयत्न करे, प्रत्युत वह उससे मधुर शब्दों में कहे कि तुम मुझे फैंकने का कष्ट क्यों करते हो। यदि मै तुम्हें बोझ रूप प्रतीत होता हूँ और तुम मुझे तुरन्त ही नौका से हटाना चाहते हो तो लो मैं स्वयं ही सरिता की धारा में उतर जाता हूं। उसके इतना कहने पर भी यदि कोई अज्ञानी नाविक उसका हाथ पकड़कर उसे जल में फैंक दे, तो साधु उस समय शांत भाव से अपने भौतिक देह का त्याग कर दे। परन्तु, उस समय उन व्यक्तियों पर मन से भी क्रोध न करे और न उनसे प्रतिशोध लेने का ही सोचे और उन्हें किसी तरह का अभिशाप भी न दे और न दुर्वचन ही कहे। .. प्रस्तुत सूत्र में साधुता के आदर्श एवं उज्जवल स्वरूप का एक चित्र उपस्थित किया गया है। साधु की इस विराट् साधना का यथार्थ रूप तो अनुभव गम्य ही है, शब्दों के द्वारा उस स्वरूप को प्रकट करना कठिन ही नहीं, असम्भव है। आत्मा के इस विशुद्ध आचरण के सामने दुनिया की सारी शक्तियां निस्तेज हो जाती हैं इसके प्रखर प्रकाश के सामने सहस्त्रकिरण सूर्य का प्रकाश भी धूमिल सा प्रतीत होता है। आत्मा की यही महान् शक्ति है जिसकी साधना करके मानव आत्मा से परमात्मा बनता है, साधक से सिद्ध अवस्था को प्राप्त करता है। ___ इस सूत्र में सचेलक साधु को ही निर्देश करके यह आदेश दिया गया है। यहां पर वस्त्रों को फैलाकर फिर उन्हें समेटने का आदेश दिया गया है। इससे यही स्पष्ट होता है कि यह पाठ स्थविर कल्पी मुनि को लक्ष्य करके कहा गया है। यदि कोई नाविक साधु को जल में फैंक दे तो उस समय उसे क्या करना चाहिए