Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 274 2-1-3-2-2 (455) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन / संस्कृत-छाया : सः परः नौगतः नौगतं वदेत्- हे आयुष्मन् ! एषः श्रमण: नावि भाण्डभृतः भवति, तस्य बाहं गृहीत्वा नाव: उदके प्रक्षिपेत्, एतत्-प्रकारं निर्घोषं श्रुत्वा निशम्य स: च चीवरधारी स्यात्, शीघ्रमेव चीवराणि उद्वेष्टयेत् वा निर्वेष्टयेत् वा, शिरोवेष्टनं वा कुर्यात्, अथ० अभिक्रान्तक्रूरकर्माणः खलु बालाः बाहुभ्यां गृहीत्वा ना० प्रक्षिपेत्, स: पूर्वमेव वदेत्- हे आयुष्मन् ! गृहपते ! मा मा इत: बाहुना गृहीत्वा नाव: उदके प्रक्षिप, स्वयं एव अहं नाव: उदके अवगाहिष्ये, स: न एवं वदन्तं परः सहसा बलेन बाहुभ्यां गृहीत्वा० प्रक्षिपेत्, तं न सुमना: स्यात्, न दुर्मना: स्यात्, न उच्चावचं मन: नियच्छेत्, न तेषां बालानां घाताय वधाय समुतिष्ठेत्, अल्पोत्सुक: यावत् समाधिना तत: सं० उदके प्रविशेत् / / 455 // III सूत्रार्थ : यदि नाविक नौका पर बैठे हुए किसी अन्य गृहस्थ को इस प्रकार कहे कि हे आयुष्मन् गृहस्थ ! यह साधु जड़ वस्तुओं की तरह नौका पर केवल भारभूत ही है। यह न कुछ सुनता है और ना कोई काम ही करता है। अतः इसको भुजा से पकड़कर इसे नौका से बाहर जल में फेंक दे। इस प्रकार के शब्दों को सुनकर और उन्हें हृदय में धारण करके वह मुनि यदि वस्त्रधारी है तो शीघ्र ही वस्त्रों को फैलाकर, फिर उन्हें अपने सिर पर लपेट कर विचार करे कि ये अत्यन्त क्रूर कर्म करने वाले अज्ञानी लोग मुझे भुजाओं से पकड़कर नौका से बाहर जल में फैंकना चाहते हैं। ऐसा विचार कर वह उनके द्वारा फैंके जाने के पूर्व ही उन गृहस्थों को सम्बोधित करके कहे कि आयुष्मन् गृहस्थों ! आप लोग मुझे भुजाओं से पकड़कर जबदस्ती नौका से बाहर जल में मत फैंको। मैं स्वयं ही इस नौका को छोड़ कर जलमें प्रविष्ट हो जाऊंगा। साधु के ऐसे कहने पर भी यदि कोई अज्ञानी जीव शीघ्र ही बलपूर्वक साधु की भुजाओं को पकड़ कर उसे नौका से जल में फेंक दे, तो जल में गिरा हुआ साधु मन में हर्ष-शोक न करे। वह मनमें किसी तरह का संकल्प-विकल्प भी न करे और उनकी घात-प्रतिघात करने का तथा उनसे प्रतिशोध लेने का विचार भी न करे इस तरह वह मुनि राग द्वेष से रहित होकर समाधिपूर्वक जल में प्रवेश कर जाए। IV टीका-अनुवाद : नौका में रहा हुआ नाविक जब नौका में रहे हुए अन्य गृहस्थों को कहे कि- हे आयुष्मन् यहां बैठा हुआ यह साधु पात्र की समान जड जैसा बैठा है अथवा भारी सामान की तरह बहोत सारे वजनवाला भारी है, अतः इसको बाहु में पकडकर नौका के बाहर जल में फेंक दो... इत्यादि बात-चित को सुनकर या अन्य कहिं से जानकर वह साधु गच्छगत याने