Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-2-3-3 (423) 219 चाहिए। प्रस्तुत सूत्र से उस युग के साधु समाज में प्रचलित उपधियों-उपकरण का एवं उस युग की विभिन्न साधना पद्धतियों का परिचय मिलता है और साथ में गृहस्थ की उदारता का भी परिचय मिलता है कि वह बिना किसी भेद भाव से सभी संप्रदाय के भिक्षुओं को विश्राम करने के लिए मकान दे देता था। उसके द्वार सभी के लिए खुले थे। साधु को स्थान की याचना किस तरह करनी चाहिए, इसका उल्लेख सूत्रकार महर्षि सुधर्मस्वामी आगे के सूत्र से करेंगे। I सूत्र // 3 // // 423 // . से आगंतारेसु वा अणुवीय उवस्सयं जाइज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते उवस्सयं अणुण्णविज्जा- कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण यं वसिस्सामो जाव आउसंतो ! जाव आउसंतस्स उवस्सए जाव साहम्मियाइं ततो उवस्सयं गिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो // 423 // I संस्कृत-छाया : - सः आगन्तागारेषु वा अनुविचिन्त्य उपाश्रयं याचेत, यः तत्र ईश्वरः यः तत्र समधिष्ठाता, सः उपाश्रयं अनुज्ञापयेत्- कामं खलु आयुष्मन् ! यथाप्राप्तं यथापरिज्ञातं वत्स्यामः यावत् आयुष्मन् ! यावत् आयुष्मत: उपाश्रयः, यावत् साधर्मिका: तत: उपाश्रयं गृहीष्यामः, ततः परं विहरिष्यामः // 423 // III सूत्रार्थ : वह साधु धर्मशालाओं आदि में प्रवेश करने के अनन्तर यह विचार करे कि- यह उपाश्रय किसका है और यह किसके अधिकार में है ? तदनन्तर उपाश्रय की याचना करे। (इस सूत्र का विषय कुछ क्लिष्ट है इसलिए प्रश्नोत्तर के रूप में लिखा जाता है) मुनि- आयुष्मन् गृहस्थ ! यदि आप आज्ञा दें तो आपकी इच्छानुकूल जितने समय पर्यन्त और जितने भूमि भाग में आप रहने की आज्ञा देंगे, उतने ही समय और उतने ही भूमि भाग में हम रहेंगे। गृहस्थ- आयुष्मन् मुनिराज ! आप कितने समय तक रहेंगे ? मुनि- आयुष्मन् सद्गृहस्थ ! किसी कारण विशेष के बिना हम ग्रीष्म और हेमन्त ऋतु में एक मास और वर्षा ऋतु में चार मास पर्यन्त रह सकते हैं।