Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 376 2-1-6-2-1 (487) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 1 अध्ययन - 6 उद्देशक - 2 म. पात्रैषणा इस दुसरे उद्देशक का अभिसंबंध इस प्रकार है कि- पहले उद्देशक में पात्र का निरीक्षण करने की बात कही है, अब यहां दुसरे उद्देशक में उस पात्र ग्रहण की शेष विधि कहतें हैं... इस संबंध से आये हुए दुसरे उद्देशक का यह पहला सूत्र है... I सूत्र // 1 // // 487 // से भिक्खू वा गाहावइकुलं पिंड० पविढे समाणे पुवामेव पेहाए पडिग्गहगं अवहट्ट पाणे पमज्जिय रयं तओ संजयामेव० गाहावइं० पिंड निक्ख० प० केवलीo आउ0 ! अंतो पडिग्गहगंसि पाणे वा बीए वा हरि० परियावज्जिज्जा, अह भिक्खूणं पुटवोव० चं पुत्वामेव पेहाए पडिग्गहं अवहट्ट पाणे पमज्जिय रयं, तओ संजयामेव० गाहावड़० निक्खमिज्ज वा // 487 / / II संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः वा गृहपतिकुलं पिण्डपातप्रतिज्ञया प्रविष्टः सन् पूर्वमेव प्रेक्ष्य पतद्ग्रह अपहत्य प्राणिनः प्रमृज्य रजः ततः संयतः एव गृहपतिकुलं पिण्डपातप्रतिज्ञया निष्क्रामेत् वा प्रविशेत् वा, केवली ब्रूयात्- आदानमेतत् / हे आयुष्मन् ! अन्तः पतद्ग्रहे प्राणिन: वा बीजानि वा हरितानि वा पर्यापद्येत, अथ भिक्षूणां पूर्वोपदिष्टा० यत् पूर्वमेव प्रेक्ष्य पतद्ग्रहं अपहत्य प्राणिनः प्रमृज्य रजः, ततः संयतः एव गृहपतिकुलं निष्क्रामेत् वा प्रविशेद् वा // 487 // III सूत्रार्थ : गृहस्थ के घर में आहार पानी के लिए जाने से पहले संयमनिष्ठ साधु साध्वी अपने पात्र का प्रतिलेखन करे। यदि उसमें क्षुद्र जीव-जंतु आदि हों तो उन्हें बाहर निकाल कर एकान्त में छोड़ दे और रज आदि को प्रमार्जित कर दे। उसके बाद साधु आहार आदि के लिए उपाश्रय से बाहर निकले और गृहस्थ के घर में प्रवेश करे। क्योंकि भगवान का कहना है कि बिना प्रतिलेखना किए हुए पात्र को लेकर जाने से उसमें रहे हुए क्षुद्र जीव जन्तु एवं बीज आदि की विराधना हो सकती है। अतः साधु को आहार पानी के लिए जाने से पूर्व पात्र का /