Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan

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Page 553
________________ 514 2-3-29 (537) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन I सूत्र // 29 // // 537 // अहावरं दुच्चं महव्वयं पच्चक्खामि, सव्वं मुसावायं वइदोसं, से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा, नेव सयं मुसं भासिज्जा, नेवण्णेणं मुसं भासाविज्जा, अण्णं पि मुसं भासंतं न समणुमण्णिज्जा, तिविहं तिविहेणं मनसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि जाव वोसिरामि, तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तथिमा पढमा भावणा-अणुवीइभासी से णिग्गंथे, नो अणणुवीइभासी, केवली बूया०-अणणुवीइभासी से णिग्गंथे समावज्जिज्ज मोसं वयणाए, अणुवीइभासी से णिग्गंथे, नो अणणुवीइभासित्ति पढमा भावणा। अहावरा दुच्चा भावणा-कोहं परियाणइ से णिग्गंथे नो कोहणे सिया, केवली बूया० कोहप्पते कोहत्तं समावइज्जा मोसं वयणाए, कोहं परियाणइ से णिग्गंथे, न य कोहणे सियत्ति दुच्चा भावणा। अहावरा तच्चा भावणा-लोभं परियाणइ से णिग्गंथे, नो य लोभणे सिया, केवली बूया० लोभपत्ते लोभी समावइज्जा मोसं वयणाए, लोभं परियाणइ से णिग्गंथे, नो य लोभणए सियत्ति तच्चा भावणा। अहावरा चउत्था भावणा-भयं परियाणइ से णिग्गंथे, नो भयभीरुए सिया, केवली बूया० भयपत्ते भीरू समावइज्जा मोसं वयणाए, भयं परियाणड से णिग्गंथे, नो भयभीरुए सिया, इइ चउत्था भावणा। अहावरा पंचमा भावणा-हासं परियाणड से णिग्गंथे, नो य हासणए सिया: केवली बूया० हासपत्ते हासी समावइज्जा मोसं वयणाए, हासे परियाणइ से णिग्गंथे, नो हासणए सियत्ति पंचमी भावणा। एतावता दोच्चे महव्वए सम्म काएण फासिए जाव आणाए आराहिए यावि भवइ, दुच्चे भंते ! महव्वए ! // 537 / / II संस्कृत-छाया : अथाऽपरं द्वितीयं महाव्रतं प्रत्याख्यामि, सर्वं मृषावाद वाग्दोष, सः क्रोधात् वा लोभाद् वा भयात् वा हास्यात् वा, नैव स्वयं मृषां भाषेत, नैव अन्येन मृषां भाषयेत्, अन्यमपि मृषां भाषमाणं न समनुमन्येत, त्रिविधं त्रिविधेन मनसा वचसा कायेन, तस्य हे भदन्त ! प्रतिक्रामामि यावत् व्युत्सृजामि, तस्य इमाः पच भावनाः भवन्ति।

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