Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-11-1 (394) 153 आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 1 अध्ययन - 1 उद्देशक - 11 म पिण्डैषणा दशवा उद्देशक कहा, अब ग्यारहवे उद्देशक का प्रारंभ करतें हैं... और इसका परस्पर यह संबंध है कि- दशवे उद्देशक में प्राप्त पिंड की विधि कही थी, और यहां ग्यारहवे उद्देशक में भी वह हि प्राप्तपिंड की विधि विशेष प्रकार से कहतें हैं... I सूत्र // 1 // // 394 // भिक्खागा नामेगे एवमाहंसु समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं वा दुइज्जमाणे मणुण्णं भोयणजायं लभित्ता से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह, से य भिक्खू नो भुंजिज्जा, तुमं चेत् णं भुंजिज्जासि, से एगइओ भोक्खामि त्ति कट्ट पलिउंचिय आलोइज्जा, तं जहा इमे पिंडे इमे लोए इमे तिते इमे कडुयए इमे कसाए इमे अंबिले इमे महरे, नो खलु इत्तो किंचि गिलांणस्स सयइत्ति माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिज्जा तहाठियं आलोइज्जा जहाठियं गिलाणस्स सयइत्ति, तं तित्तयं तित्तएति वा कडुयं कडुयं फसायं कसायं अंबिलं अंबिलं महुरं महरं० // 394 // // संस्कृत-छाया : . . भिक्षाटा: नाम एके एवं आहुः - समाना: वा, वसन्तः वा ग्रामानुग्रामं गच्छन्तो वा मनोज्ञं भोजनजातं लब्ध्वा, सः यः कश्चित् भिक्षुः ग्लायति, तस्मै गृह्णीत, तस्मै आहरत, सः च भिक्षुः न भुङ्क्ते, त्वमेव भुव, स: एकाकिक: भोक्ष्ये इति कृत्वा गोपित्वा गोपित्वा आलोकयेत्, - तद् - यथा - अयं पिण्डः, तत्र अयं रुक्ष: अयं तिक्तः, अयं कटुकः अयं कषाय, अयं अम्लः, अयं मधुरः, न खलु अत: किञ्चत् ग्लानाय स्वदति इति मातृस्थानं संस्पृशेत्, न एवं कुर्यात् / तथास्थितं आलोकयेत्, यथास्थितं ग्लानाय स्वदति इति, तं तिक्तकं तिक्तक इति वा, कटुकं कटुकः, कषायं कषायः, अम्लं अम्लः, मधुरं मधुरः इति० // 394 / / III सूत्रार्थ : . एक क्षेत्र में किसी कारण से साधु रहते हैं, वहां पर ही व्यामानुयाम विचरते हुए अन्य साधु भी आ गये हैं और वे भिक्षाशील मुनि मनोज्ञ भोजन को प्राप्त कर उन पूर्वस्थित भिक्षुओं को कहे कि अमुक भिक्षु रोगी है उसके लिए तुम यह मनोज्ञ आहार ले लो। यदि वह रोगी