Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 436 2-2-4-1-2 (503) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन % 3D स: भिक्षुः वा0 अथ वा एकक:० तद्यथा-त्रिकाणि वा चतुष्काणि वा चर्चराणि वा चतुर्मुखानि वा अन्य० तथा० शब्दान् न अभि० / .. स: भिक्षुः वा० अथ वा एक क:० तद्यथा- महिषकरणस्थानानि वा वृषभकरणस्थानानि वा अश्वकरणस्थानानि वा हस्तिकरणस्थानानि वा यावत् कपिजलकरणस्थानानि वा अन्य० तथा० न अभिं० / स: भिक्षुः वा० अथ वा एकक:० तद्यथा महिषयुद्धानि वा यावत् कपिञ्जलयुद्धानि वा अन्य० तथा० न अभि०। स: भिक्षुः वा० अथ वा एकक:० तद्यथा- यूथस्थानानि वा हययूथस्थानानि वा गजयूथस्थानानि वा अन्य० तथा० न अभिसन्धारयेत् गमनाय || 503 // III सूत्रार्थ : संयमशील साधु या साध्वी को कभी कई तरह के शब्दों सुनाई दे तब उन्हे खेत के क्यारों में खाई यावत् सरोवर, समुद्र और सरोवर की पंक्तियां इत्यादि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का मन में संकल्प नहीं करना चाहिए। तथा साधु जल-बहुल प्रदेश, वनस्पति समूह, वृक्षों के सघन प्रदेश, वन, पर्वत और विषम पर्वत इत्यादि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का भी संकल्प न करे। इसी भांति याम, नगर, निगम, राजधानी, आश्रम, पतन और सन्निवेश आदि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का भी मन में संकल्प न करे। तथा आराम, उद्यान, वन, वन-खण्ड, देवकुल, सभा और प्रपा (जल पिलाने का स्थान) आदि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने की प्रतिज्ञा से वहां जाने के लिए मनमें विचार न करे। एवं अट्टारी, प्रकार, प्रकार के ऊपर की फिरनी और नगर के मध्य का आठ हाथ प्रमाण राजमार्ग, द्वार तथा नगर में प्रवेश करने का बड़ा द्वार इत्यादि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए भी जाने का मन में भाव न लाए। इसी तरह नगर में त्रिपथ, चतुष्पथ, बहुपथ और चतुर्मुख मार्ग, इत्यादि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का भी मन में विचार न करे। इसी भांति भैंसशाला, वृषभशाला, घुड़शाला हस्तीशाला और कपिंजल पक्षी के ठहरने के स्थान आदि पर होने वाले शब्दों को सुनने के लिए भी जाने का विचार न करे। तथा वर-वधू के मिलने का स्थान (विवाह-वेदिका) घोडों के यूथ का स्थान, हाथी-यूथ का स्थान यावत् कपिंजल का स्थान इत्यादि स्थानों के शब्दों को सुनने के लिए भी जाने का विचार न करे। टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. कभी एक समय कोड शब्दों को सुने- जैसे कि- वप्र याने IV टीका