Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 118 2-1-1-8-3 (379) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन गृहपति के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी प्रलम्बजात फलजात-फल समुदाय को जाने, देखे कि- यथा-आमप्रलम्ब आमफल का गुच्छा-फलसामान्य, अम्बाडग फल, ताडफल, लताफल, सुरभि फल, और शल्यकी का फल तथा इसी प्रकार का अन्य कोइ प्रलम्बजात . कच्चा और जो शस्त्र परिणत नही हुआ हो वह मिलने पर अप्रासुक जान कर ग्रहण न करे। गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी प्रवालजात-पत्र समुदाय को जाने यथा अश्वत्थ प्रवाल, न्यग्रोध-वट प्रवाल, प्लक्ष प्रवाल, निपूर प्रवाल, नन्दी वृक्ष प्रवाल और शल्यकी प्रवाल तथा इस प्रकार का कोई अन्य प्रवालजात कच्चा अशस्त्रपरिणत (जिसे शस्त्रपरिणत नही हुआ) मिलने पर अप्रासक जानकर ग्रहण न करे। - गृहपति के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी अबद्धास्थि फल-कोमल फल को जाने, जैसे कि- आम वृक्ष का कोमल फल, कपित्थ का कोमल फल, अनार का कोमल फल और बिल्व का कोमल फल तथा इसी प्रकार का अन्य कोमल फल जो कि कच्चा और शस्त्र परिणत नहीं, एसा फल मिलने पर भी अप्रासुक जान कर साधु उसे परिग्रहण न करें... गृहस्थी के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी मन्थु के सम्बंध में जानकारी करे जैसेउदुम्बर मन्थु-चूर्ण, न्यग्रोधमन्थु, प्लक्षमथु, अश्वत्थमन्थु, तथा इसी प्रकार का अन्य मन्थुजात जो कि कच्चा और थोड़ा पीसा हुआ तथा सबीज अर्थात् जिसका कारण-योनि बीज विध्वस्त नहीं हुआ ऐसे चूर्ण जात को मिलने पर भी अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे। IV टीका-अनुवाद : इस सूत्र का अर्थ सुगम है, तो भी जो कठिन है वह कहते हैं- सालुंक याने जल में उत्पन्न होनेवाला कंद, विरालियं याने भूमि में हि उत्पन्न होनेवाला कंद, सासवनालियं याने सर्षपके कंद, तथा पिप्पली एवं मरिच तो प्रतीत हि है, तथा शृंगबेर याने आर्द्रक, तथा तथाप्रकार के आमले आदि आम याने कच्चे या शस्त्र से उपहत न हुए हो अर्थात् अचित्त न हुए हो, ऐसे उन्हे साधु ग्रहण न करें... . तथा प्रलंबजात याने सामान्यफल, झिज्झिरी याने-वल्ली (वेलडी) के पाश (जाल) तथा सुरभि याने शता... इत्यादि... , तथा अश्वत्थं (पिंपल) तथा पिलुंखु याने पिप्परली, निपूर याने नंदीवृक्ष, तथा सरडुय याने जिस में अस्थि (मिंज) न बंधे हो ऐसे फल, तथा कपित्थ (कोठे) आदि... तथा मंथु याने चूर्ण, तथा दुरुक्क याने थोडा पीसा हुआ, और साणुबीय याने जिस बीज में योनि विनष्ट न हुइ हो ऐसे बीज...