Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-11-3 (396) 157 करना चाहिए। पदार्थों के स्वाद की अपेक्षा साधना, सरलता, सेवा एवं सत्यता का अधिक मूल्य है, उस से आत्मा का विकास होता है। इसलिए साधु को शुद्ध एवं निष्कपट भाव से रोगी की सेवा करनी चाहिए और उसके लिए जो आहार दिया गया हो उसे बिना छुपाए उसी रूप में उसको देना चाहिए। वृत्तिकार का भी यही अभिमत है। अब सप्त पिडैषणा के विषय में सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 3 // // 396 // अह भिक्खू जाणिज्जा सत्त पिंडेसणाओ, सत्त पाणेसणाओ, तत्थ खलु इमा पढमा पिंडेसणा - असंसढे हत्थे असंसढे मत्ते, तहप्पगारेण असंसटेण हत्थेण वा मत्तेण वा असणं वा सयं वा णं जाइज्जा, परो वा से दिज्जा, फासुअं पडिगाहिज्जा, पढमा पिंडेसणा। अहावरा दुच्चा पिंडेसणा - संसढे हत्थे संसढे मत्ते, तहेव दुच्चा पिंडेसणा। अहावरा तच्चा पिंडेसणा - इह खलु पाईणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति - गाहावई वा जाव कम्मकरी वा; तेसिं च णं अण्णयरेसु विरुवरुवेसु भायणजाएसु उवनिक्खित्तपुवे सिया, तं जहा - थालंसि वा पिढरंसि वा सरगंसि वा परगंसि वा वरगंसि वा, अह पुणेवं जाणिज्जा - असंसढे हत्थे संसढे मत्ते, संसट्टे वा हत्थे असंसद्धे मते, से य पडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहिए वा, से पुव्वामेव आउसोत्ति वा ! एएण तुमं असंसटेण हत्थेण संसद्वेण मत्तेण, संसद्वेण वा हत्थेण असंसडेण मत्तेण अस्सिं पडिग्गहगंसि वा पाणिंसि वा निहट्ट उचित्तु दलयाहि, तहप्पगारं भोयणजायं सयं वा णं जाइज्जा, फासुयं० पडिगाहिज्जा, तइया पिंडेसणा। __ अहावरा चउत्था पिंडेसणा - से भिक्खू वा से जं पिहुयं वा जाव चाउलपलंब वा अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्जवजाए, तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा सयं वा णं० जाव पडि० चउत्था पिंडेसणा। अहवरा पंचमा पिंडेसणा - से भिक्खू वा उग्गहियमेव भोयणजायं जाणिजा, तं जहा सरावंसि वा डिंडिमंसि वा कोसगंसि वा, अह पुणेवं जाणिज्जा - बहुपरियावण्णे पाणीसु दगलेवे, तहप्पगारं असणं वा, सयं जाव पडिगाहिक पंचमा पिंडेसणा। अहावरा छट्ठा पिंडेसणा - से भिक्खू वा पग्गहियमेव भोयणजायं जाणिज्जा, जं च सयट्ठा पग्गाहियं, जं च परट्ठा पग्गहियं, तं पायपरियावण्णं तं पाणिपरियावण्णं फासुयं पडि० छट्ठा पिंडेसणा।