Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 168 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन वल्गुमती नाम की एक बहिन है... अब एक बार वहां गौतम नाम का निमित्तज्ञ आया तब उत्कल और कलिंग ने उनका स्वागत किया, उस वख्त उनकी बहिन वल्गुमति ने कहा कियह पुरुष भद्रक याने भला (अच्छा) नहि है... यदि यह पुरुष यहां रहेगा तो कभी न कभी अपनी पल्लि (निवास स्थान) का विनाश करेगा... इसलिये इस पुरुष को यहां से निकाल दीया जाय... तब उन दोनों भाइओं ने उस निमित्तज्ञ पुरुष को वहां से निकाल दीया... इस स्थिति में उस पुरुष ने गुस्से में आकर एक प्रतिज्ञा की कि- यदि में वल्गमती के उदर (पेट) को चीरकर वहां न सोउं तो मैं पुरुष नहि... इत्यादि... यहां अन्य आचार्य ऐसा कहतें हैं कि- वह वल्गुमती अपने पुत्र-पुत्रीयां छोटे होने के कारण से वह हि उस पल्लिकी स्वामिनी थी, और उत्कल तथा कलिंग दोनों निमित्तज्ञ थे... वह वल्गुमती इन दो निमित्तज्ञ के प्रति सद्भाववाली होने से पहले से हि वहां रहनेवाले गौतम नाम के निमित्तज्ञ को वहां से निकाल दीया... इस स्थिति में वह गौतम निमित्तज्ञ गुस्से में आकर प्रतिज्ञा करके सर्षप (सरसव) को बोता हुआ वहां से निकल गया... वर्षाकाल में वे सर्षय अंकुरित होकर पौधे बन गये, तब उस सर्षपके पौधे की पंक्ति के अनुसार उस गौतम निमित्तज्ञने अन्य कोइ राजा को उस पल्लि में प्रवेश कराकर संपूर्ण पल्लि को लुटकर जला दी... और गौतम निमित्तज्ञने भी उस वख्त वल्गुमती का पेट (उदर) फाडकर मूर्छित जीवित देहवाली उस वल्गुमती के उपर सो गया... इस प्रकार जो गौतम का सोना (रहना) वह सचित्त द्रव्यशय्या है... अब भावशय्या का स्वरूप कहतें हैं... भावशय्या के दो प्रकार है... 1. काय विषयक, एवं 2. षड्भावविषयक... उनमें षड्भाववाली शय्या इस प्रकार है कि- जो जीव औदयिक आदि सन्निपात पर्यंत के छह (6) भावों मे जिस समय कहता है वह षड्भावभावशय्या... क्योंकिजहां रहा जाय- शयन कीया जाय वह भावशय्या... तथा स्त्रीआदि के शरीर में गर्भ स्वरूप जो जीव रहा हुआ है, उसको वह स्त्रीदेह हि भावशय्या है... क्योंकि- स्त्री आदि का शरीर सुखी हो या दुःखी हो, सोया हुआ हो या उठा (खडा-बैठा) हुआ हो तब उनके शरीर में रहा हुआ जीव भी वैसी हि अवस्था को प्राप्त करता है, अतः कायभावशय्या है... . इस संपूर्ण अध्ययन का विषय शय्या है... अब उद्देशार्थाधिकार कहने के लिये नियुक्तिकार आगे की गाथा कहतें हैं... . इस द्वितीय अध्ययन के तीनों उद्देशकों में शय्या संबंधि अधिकार है, फिर भी उनमें परस्पर जो विशेषता है वहा मैं संक्षेप में कहता हुं... प्रथम उद्देशक में वसति के आधाकर्मादि उद्गम दोष एवं गृहस्थ आदि के संसर्ग से होनेवाले अपाय (उपद्रव) का विचार कीया जाएगा... तथा द्वितीय उद्देशक में शौचवादीओं से होनेवाले अनेक प्रकार के दोष तथा शय्या (वसति) का विवेक एवं ऐसी वसति का त्याग कहा जाएगा... इस प्रकार यहां यह अधिकार है...