Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-2-3-3-1 (499) 421 रखकर प्राणी, भूत, जीव, सत्त्वों की हिंसा करके स्थण्डिल बनाया हो तो इस प्रकार का स्थण्डिल, जब तक वह अपुरुषान्तर कृत है अर्थात् किसी के भोगने में नहीं आया है तब तक इस प्रकार के स्थण्डिल में मल मूत्र का परित्याग न करे। यदि इस प्रकार जान ले कि यह पुरुषान्तर कृत है या अन्य के द्वारा भोगा हुआ है तो इस प्रकार के स्थण्डिल में मल मूत्र का त्याग कर सकता है। ___ यदि साधु या साध्वी इस प्रकार जान ले कि गृहस्थ ने साधु की प्रतिज्ञा से स्थण्डिल बनाया या बनवाया है, उधार लिया है, उस पर छत डाली है- उसे सम किया है और संवारा है तथा धूप से सुगंधित किया है तो इस प्रकार के स्थण्डिल में मल मूत्र का त्याग न करे। यदि साधु इस प्रकार जाने कि गृहपति या उसके पुत्र कन्द मूल और हरि आदि पदार्थों को भीतर से बाहर और बाहर से भीतर ले जाते या रखते हैं, तो इस प्रकार के स्थण्डिल में मल मूत्रादि न परठे। यदि साधु इसप्रकार जाने कि यह स्थण्डिल भूमि स्तम्भ पर है, पीठ पर है, मंच पर है, ऊपरी मंजिल पर है तथा अटारी और प्रासाद पर है अथवा इसी प्रकार के किसी अन्य विषम स्थान पर है तो इस प्रकार की स्थण्डिल भूमि पर मल मूत्र का परित्याग न करे। तथा सचित्त पृथ्वी पर, स्निग्ध-गीली पृथ्वी पर, सचित्त रज से युक्त पृथ्वी पर, जहां पर सचित्त मिट्टी मसली गई हो ऐसी पृथ्वी पर, सचित्त शिला पर, सचित्तशिला खंड पर, घुण युक्त काष्ठ पर, द्वीन्द्रियादि जीव युक्त काष्ठ पर, यावत् मकड़ी के जाला आदि से युक्त भूमि पर मल मूत्रादि न परठे। IV. टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. जब कभी उच्चार एवं प्रश्रवण याने मल-मूत्र विसर्जन करने के लिये अतिशय पीडित हो तब अपने मात्रक आदि में उच्चारादि करें... यदि अपने आपके मात्रक आदि न हो तब अपने साधर्मिक- साधु के पास पडिलेहण किये हुए मात्रक आदि की याचना करें... इस बात से यह सारांश प्राप्त हुआ कि- साधु मल-मूत्र के वेग को रोके नही... इत्यादि... किंतु बात यह है कि- साधु उच्चार एवं प्रश्रवण याने मल-मूत्र की शंका (बाधा) होने के पहले ही स्थंडिल भूमि में जावें... किंतु यदि वह स्थंडिल भूमी अंडों आदि से युक्त हो तो अप्रासुक ऐसी उस स्थंडिलभूमि में उच्चारादि न करें... यदि वह स्थंडिल भूमि अंडों आदि से रहित प्रासुक हो तो वहां उच्चारादि करें... तथा वह साधु जब जाने कि- यह स्थंडिल-भूमि एक या अनेक साधुओं के लिये है,