Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ 344 2-1-5-1-5 (479) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन वा पेशलानि वा कृष्णमृगाजिनानि वा नीलमृगाजिनानि वा गौरमृगा० कनकानि वा, कनककान्तीनि वा कनकपट्टानि वा कनकखचितानि वा कनकस्पृष्टानि वा व्याघ्राणि वा विव्याघ्राणि वा आभरणानि वा आभरणविचित्राणि वा अन्यतराणि तथा० आजिन प्रावरणानि वस्त्राणि लाभे सति न प्रतिगृह्णीयात् // 479 // III सूत्रार्थ : संयमशील साधु अथवा साध्वी को महाधन से प्राप्त होने वाले नाना प्रकार के बहुमूल्य वस्त्रों के सम्बन्ध में परिज्ञान होना चाहिए जैसे कि- मुषकादि के चर्म से निषपन्न, अत्यन्त सूक्ष्म, वर्ण और सौन्दर्य से सुशोभित वस्त्र तथा देशविशेषोत्पन्न बकरी या बकरे के रोमों से बनाए गए वस्त्र एवं देशविशेषोत्पन्न इन्द्रनील वर्ण कपास से निर्मित, समान कपास से बने हुए और गौड़ देश की विशिष्ट प्रकार की कपास से बने हुए वस्त्र, पट्ट सूत्र-रेशम से, मलय . सूत्र से और वल्कल तन्तुओंसे बनाए गए वस्त्र तथा अंशुक और चीनांशुक, देशराज नामक देश के, अमल देश के तथा गजफल देश के और फलक तथा कोयल देश के बने हुए प्रधान वस्त्र अथवा ऊर्ण कम्बल तथा अन्य बहुमूल्य वस्त्र-कम्बल विशेष और अन्य इसी प्रकार के अन्य भी बहुमूल्य वस्त्र, प्राप्त होने पर भी विचारशील साधु उन्हें ग्रहण न करे। संयमशील साधु या साध्वी को चर्म एवं रोम से निष्पन्न, वस्त्रों के सम्बन्ध में भी परिज्ञान करना चाहिए। जैसे कि- सिन्धुदेश के मत्स्य के चर्म और रोमों से बने हुए, सिन्धु देश के सूक्ष्मचर्म वाले पशुओं के चर्म एवं रोमों से बने हुए तथा उस चर्म पर स्थित सूक्ष्म रोमों से बने हुए एवं कृष्ण, नील और श्वेत मृग के चर्म और रोमों से बने हुए तथा स्वर्णजल से सुशोभित, स्वर्ण के समान कांति और स्वर्ण रस के स्तबकों से विभूषित, स्वर्ण तारों से खचित और स्वर्ण चन्द्रिकाओं से स्पर्शित बहुमूल्य वस्त्र अथवा व्याघ्र या बूक के चर्म से बने हुए, सामान्य और विशेष प्रकार के आभरणों से सुशोभित तथा अन्यप्रकार के चर्म एवं रोमों से निष्पन्न वस्त्रों को मिलने पर भी संयमशील मुनि स्वीकार न करे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. जब जाने कि- यह वस्त्रं बहोत सारे धन-मूल्यवाले है... जैसे कि- मूषक आदि के चर्म से बने आजिन... तथा श्लक्ष्ण याने सक्षम... तथा वर्ण एवं कांति से सुंदर ऐसे श्लक्ष्णकल्याण... तथा सूक्ष्म रोमवाले भेड़-बकरीयां के पक्ष्म-रुआंटी से बने हुए वस्त्र-आजक... तथा कोइक देश में इंद्रनील वर्णवाला कपास-रुड़ होती है, अतः उन रुइ से बने हुए वस्त्र-कायक... तथा सामान्य कपास से बनाया हुआ वस्त्र-क्षौमिक... तथा गौड देश के विशेष प्रकार के कपास से बनाये हुए वस्त्र-दुकूल... तथा पट्ट-सूत्र से बने वस्त्र-पट्ट... और मलयज सूत्र से बने वस्त्र... मलय... तथा वल्कल याने वृक्ष की छाल से बने तंतुओ के वस्त्र...