Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 220 2-1-2-3-3 (423) 'श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन गृहस्थ- इतने समय के लिए आप को यह उपाश्रय नहीं दिया जा सकता। मुनि- यदि इतने समय तक की आज्ञा नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं आप जितने समय के लिए कहेंगे उतने समय तक यहां ठहर कर फिर हम विहार कर जावेंगे। गृहस्थ- आप कितने साधु हैं ? मुनि- साधु तो समुद्र के समान अनगिनत है। क्योंकि अपने पठन पाठन आदि कार्य के लिए कई मुनि आते हैं, और अपना कार्य करके चले जाते हैं। किन्तु जो यहां पर आवेंगे वे सब आपकी आज्ञानुसार रह कर विहार कर जावेंगे। इस प्रकार मुनि को गृहस्थ के पास उपाश्रय की याचना करनी चाहिए। IV टीका-अनुवाद : वह साधु आगंतुकों के ठहरने के घरों में प्रवेश करके एवं अनुप्रेक्षा (विचार) करके याने यह उपाश्रय कैसा है ? इसका स्वामी कौन है ? इत्यादि सोच-विचार करके मकान मालिक से वसति की याचना करे, तब वहां पर यदि गृहस्वामी हो या गृहस्वामी से नियुक्त कोड सेवक हो, तो वे उन साधुओं को ठहरने की अनुमति दे... जैसे कि- हे दीर्घायुः ! हे श्रमण ! आप यहां इच्छानुसार ठहरीये... तब साधु उन्हे कहे कि- हां, ठीक है, आपकी अनुमति से दीये हुए इस उपाश्रय के इतने भाग में कुछ दिन रहेंगे... तब वह गृहस्थ कहे कि- हे श्रमण ! आप यहां कितने दिन रहोगे ? तब वह वसति के परीक्षक गीतार्थ साधु कहे कि- विशेष कारण के सिवा ऋतुबद्ध काल में एक महिना और वर्षाकाल में चार महिने रहने का विधान है... ऐसा कहने पर वह गृहस्थ कहे कि- इतने दिन तक तो मेरा यहां रहना नहि होगा.. तब वह साधु तथाप्रकार के कारण को लेकर कहे कि- हे आयुष्मन् ! आप जब तक यहां रहोगे तब तक हम आपके उपाश्रय (मकान) में निवास करेंगे, उसके बाद अन्यत्र विहार करेंगे... जब यह गृहस्थ कहे कि- हे श्रमण ! आप कितने साधुजन यहां रहेंगे ? तब वह साधु कहे कि- देखिये ! पू. आचार्य म. समुद्र के समान बहोत बडे परिवारवाले हैं, अतः साधुओं की संख्या नियत नहि कह शकतें... किंतु विभिन्न कार्यों के लिये केतनेक साधु आयेंगे, और जिन्हो का कार्य पूर्ण हुआ होगा वे अन्यत्र जाएंगे... अतः जितने भी हमारे साधर्मिक साधु आयेंगे, उनका यह निवास स्थान रहेगा, ऐसा आप जानीयेगा... यहां सारांश यह है कि- साधुओं की संख्या निश्चित न कहें... सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में उपाश्रय की याचना करने की विधि का उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है कि- साधु को सबसे पहले यह जानना चाहिए कि यह मकान किसके अधिकार