Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ 224 2-1-2-3-7/8 (427/428) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन III सूत्रार्थ : जिस उपाश्रय में जाने के लिए गृहपति के कुल से-गृहस्थ के घर से होकर जाना पड़ता हो, और जिसके अनेक द्वार हों ऐसे उपाश्रय में बुद्धिमान साधु को स्वाध्याय और कायोत्सर्ग-ध्यान नहीं करना चाहिए अर्थात् ऐसे उपाश्रय में वह न ठहरे। IV टीका-अनुवाद : जिस उपाश्रय का आने-जाने का मार्ग गुहस्थ के घर के मध्य (बीच) से हो, वहां अनेक अपाय (उपद्रव-संकट) होने की संभावना है, अतः साधु वहां स्थानादि न करें... v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- जिस उपाश्रय में जाने का मार्ग गृहस्थ के घर में से होकर जाता हो तो साधु को ऐसे स्थान में नहीं ठहरना चाहिए। क्योंकि, बार-बार गृहस्थ के घर में से आते-जाते स्त्रियों को देखकर साधु के मन में विकार जागृत हो सकता है तथा साधु के बार-बार आवागमन करने से गृहस्थ के कार्य में भी विघ्न पड़ सकता है या बहिनों के मन में संकोच या अन्य भावना उत्पन्न हो सकती है। इसी कारण आगम में ऐसे स्थानों में ठहरने का निषेध किया गया है। ___ इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्मस्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 7 // // 427 // से भिक्खू वा० से जं० इह खलु गाहावई वा० जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णं अक्कोसंति वा जाव उद्दवंति वा, नो पण्णस्स० सेवं नच्चा तहप्पगारे उव० नो ठा० // 427 // II संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः वा० स: यत् इह खलु गृहपतिः वा यावत् कर्मकर्यः वा अन्योऽन्यं आक्रोशन्ति वा यावत् उपद्रवन्ति वा, न प्रज्ञस्य० सः एवं ज्ञात्वा तथाप्रकारे उपाश्रये न स्थानादि कुर्यात् // 427 // I सूत्र // 8 // // 428 // से भिक्खू वा० से जं पुण० इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं तिल्लेण वा नव० घय० वसाए वा अब्भंगेति वा मक्खेंति वा, नो