Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-2-4 (347) 39 तो वह उसे ग्रहण कर सकता है। ___प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त ‘पिण्ड नियरेसु' का अर्थ है-मृतक के निमित्त तैयार किया गया भोजन / प्रस्तुत सूत्र से यह स्पष्ट होता है कि- उस समय इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, बलदेव, भूत, यक्ष, नाग आदि के उत्सव मनाए जाते थे, और इन अवसरों पर गृहस्थ लोग अपने ज्ञातिजनों के साथ प्रीति भोज करते थे। प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'स्तूप एवं चैत्य' शब्द एकार्थक नहीं, किन्तु, भिन्नार्थक है। मृतक की चिता पर उसकी स्मृति में बनाया गया स्मारक स्तूप' कहलाता है और यक्ष आदि का आयतन 'चैत्य' कहलाता है। यहां प्रयुक्त महोत्सव भौतिक कामनाओं के लिए किए जाते रहे हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि- चैत्य शब्द का प्रयोग जिनेश्वर तीर्थकर भगवान् की प्रतिमा या मन्दिर के लिए प्रयुक्त नहीं हुआ है। उक्त शब्द यक्षायतन या व्यन्तरायतन का परिबोधक है। अब सूत्रकार व्यामान्तरीय आचार का वर्णन करते हुए आगे का सूत्र कहेंगे... I सूत्र // 4 // // 347 // से भिक्खू वा 2 परं अद्धजोयणमेराए संखडिं नच्चा संखडिपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए। से 'भिक्खू वा 2 पाईणं संखडिं नच्चा पडीणं गच्छे अणाढायमाणे, पडीणं संखडिं नच्चा पाईणं गच्छे अणाढायमाणे, दाहिणं संखडिं नच्चा उदीणं गच्छे अणाढायमाणे, उदीणं संखडिं नच्चा दाहिणं गच्छे अणाढायमाणे, जत्थेव सा संखडी सिया, तं जहा-गामंसि वा नगरंसि वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा आगरंसि वा दोणमुहंसि वा नेगमंसि वा आसमंसि वा संनिवेसंसि वा जाव रायहाणिंसि वा संखडिं संखडिपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए केवली बूया - आयाणमेयं संखडि संखडिपडियाए अभिधारेमाणे आहाकम्मियं वा उद्देसियं वा .मीसजायं वा कीयगडं वा पामिच्चं वा अच्छिज्जं वा अणिसिटुं वा अभिहडं वा आहट्ट दिज्जमाणं भुंजिज्जा। .. असंजए भिक्खुपडियाए खुड्डियदुवारियाओ महल्लियदुवारियाओ कुज्जा, महल्लियदुवारियाओ खुड्डियदुवारियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ निवायाओ कुज्जा, निवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा बहिं वा उवस्सयस्स हरियाणि छिंदिय छिंदिय दालिय दालिय संथारगं संथारिज्जा, एस विलुंगयामो सिज्जाए, तम्हा से संजए नियंठे तहप्पगारं पुरे संखडिं वा पच्छा संखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए, एवं खलु तस्स भिक्खुस्स जाव सया जए | 347 //