Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-5-1-7 (481) 353 चाहिए। यदि वस्त्र अण्डादि से रहित, मजबूत और धारण करने के योग्य है, दाता की देने की पूरी अभिलाषा है और साधु को भी अनुकूल प्रतीत होता है तो ऐसे वस्त्र को साधु प्रासुक जानकर ले सकता है। मेरे पास नवीन वस्त्र नहीं है, इस विचार से कोई साधु-साध्वी पुरातन वस्त्र को कुछ सुगन्धित द्रव्यों से आघर्षण-प्रघर्षण करके उसमें सुन्दरता लाने का प्रयत्न न करे। इस भावना को लेकर वे ठंडे (धोवन) या उष्ण पानी से विभूषा के लिए मलिन वस्त्र को धोने का प्रयत्न भी न करे। इसी प्रकार दुर्गन्धमय वस्त्र को भी सुगन्धयुक्त बनाने के लिए सुगन्धित द्रव्यों और जल आदि से धोने का प्रयत्न भी न करे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. जब देखे कि- यह वस्त्र अण्डे आदि से युक्त है तब उन वस्त्र आदि को ग्रहण न करें... तथा वह साधु या साध्वीजी म. जब जाने कि- यह वस्त्र अंडे से रहित है यावत् संतानक याने मकडी के जाले आदि से रहित है, किंतु हीन याने न्यून आदि कारण से अभीष्ट कार्य की सिद्धि के लिये समर्थ (उपयुक्त) नहि है, तथा अस्थिर याने जीर्णशीर्ण है तथा अध्रुव याने थोडे समय के लिये वापरने की अनुज्ञा दी है, तथा अशुभ ऐसे काजल आदि के डाघ से कलंकित है... इत्यादि... अन्यत्र भी कहा है कि- वस्त्र में चार भाग देव संबंधित होतें हैं, दो भाग मनुष्य संबंधित होतें हैं तथा दो भाग असुर संबंधित होतें हैं और वस्त्र के मध्य भाग में राक्षस का वास होता है... अतः देव संबंधित भाग में उत्तम लाभ होता है, मनुष्य के भाग में मध्यम लाभ होता है, तथा असुर के भाग में ग्लानि-शोक होता है, और राक्षस के भाग में मरण कहा गया है ऐसा जानो... तथा लक्षण रहित उपधि (वस्त्रादि उपकरण) से ज्ञान-दर्शन एवं चारित्र का विनाश होता है.. इत्यादि... इस प्रकार ऐसे अयोग्य वस्त्र प्रशस्त याने सुंदर हो और गृहस्थ दे रहा हो तो भी वह वस्र साधु को कल्पता नहि है... अधुवं . लं; 39 अब अनल आदि चार पदों के सोलह भांगे-विकल्प होतें हैं... अनलम् अस्थिरं अधुवं अधारणीयम् अनलम् अस्थिरं धारणीयम् अनलम् अस्थिरं अधारणीयम् अनलम् अस्थिरं ध्रुवं . धारणीयम् अनलम् स्थिरं अधारणीयम् अनलम् स्थिरं धारणीयम् अनलम् स्थिरं ध्रुवं अधारणीयम् अनलम् स्थिरं धारणीयम् अधुवं अधुवं