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फटी चिंदियां पहने भूखे भिखारी फकत जानते हैं तेरी इंतजारी बिलखते हुए भी अलख जग रहा है चिदानंद का ध्यान - सा लग रहा है तेरी बाट देखूं चने तो चुगा जा हैं फैले हुए पर, उन्हें कर लगा जा मैं तेरा ही हूं, इसकी साखी दिला जा जरा चहचहाहट तो सुनने को आ जा जो यूं तू इछुड़ने- बिछुड़ने लगेगा तो पिंजरे का पंछी भी उड़ने लगेगा
जरा-जरा ...! अभी पिंजरे के एकदम बाहर होने की जरूरत भी नहीं है। जरा पिंजरे में ही तड़फड़ाने लगो।
जो यूं तू इछुड़ने-बिछुड़ने लगेगा तो पिंजरे का पंछी भी उड़ने लगेगा
हैं फैले हुए पर, उन्हें कर लगा जा मैं तेरा ही हूं, इसकी साखी दिला जा
धीरे-धीरे साक्षी भाव से तुम्हें परमात्मा की यह आवाज सुनाई पड़ने लगेगी कि तुम मेरे हो, कि मैं ही तुममें समाया हूं, कि तुम मेरे ही फैलाव, मेरे ही विस्तार, कि मैं सागर और तुम मेरी लहर ! साक्षी भाव से परमात्मा तुम्हारा गवाह होने लगेगा। और वहीं है जीवन - रूपांतरण का सूत्र, वहीं है अमृत की धार - जहां से मृत्यु विदा हो जाती है; जहां से देह से संबंध छूट जाते हैं; जहां सपना विसर्जित हो जाता है और उस परम चैतन्य में अलख जग जाती है; उस परम चैतन्य के साथ सदा के लिए संबंध जुड़ जाता है !
खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं
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