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हैं। तुम्हारे तथाकथित साधु-संन्यासी भय के कारण बैठे रह गये हैं; पद्मासन में बैठे हैं। उसे तुम पद्मासन मत समझना; उस पद्मासन में पद्म तो है ही नहीं-पद्म यानी कमल-वह खिलाव तो है ही नहीं, फूल तो है ही नहीं, सुवास तो है ही नहीं, कहने को पद्मासन है, कमल कहां खिल रहा! कमल के खिलने से तो वे घबड़ा गये हैं; उन्होंने सब पंखुड़ियां समेट ली हैं।
एक साधु मेरे पास मेहमान हुए। सुबह तीन बजे उठ कर वे पद्मासन में ध्यान करने बैठ गये। मैंने उनसे पूछा : क्या कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि पद्मासन में बैठ कर ध्यान कर रहा हूं। मैंने कहाः यह पद्मासन है ही नहीं। तुमने कभी किसी कमल को किसी आसन में बैठे देखा है? डोलता है हवा के साथ, सूरज की किरणों के साथ खुलता, जीवंत होता है। आसन में देखा किसी कमल को कभी? आसन में चट्टानें होती हैं; फूल कहीं आसन में होते हैं; डोलते हैं। तो मैंने कहा, अगर कमल जैसा होना है तो डोलो थोड़ा, नाचो थोड़ा, गीत गुनगुनाओ, ऐसे जड़ हो कर मत बैठ जाओ। अगर ऐसा जड़ हो कर ही बैठना है तो कम से कम पद्मासन तो मत कहो, कुछ और नाम खोज लो-जड़ासन।
उठो इस एकांत से दामन छुड़ाओ, इस महज शांत से। - महज शांत भी कोई शांति है? तुम फर्क समझते हो? एक हरियाली शांति होती है-हरी-भरी, फुदकती-नाचती, धड़कती, श्वास चलती। जगत को देखो, यहां शांति बहुत है! ये वृक्ष शांत खड़े हैं, लेकिन फिर भी जड़ नहीं हैं। हवायें निकलेंगी इनके बीच से और ये डोलेंगे मस्ती में। अस्तित्व शांत है, फिर भी एक गुनगुन है, एक गीत है। झरने शांत हैं, फिर भी एक नाद है, एक नृत्य है। तुम्हारी शांति अगर मुखर न हो, तुम्हारा मौन अगर बोले नहीं, तो सावधान रहना कि यह तुमने एक नई जड़ता पकड़ी। फिर तुम अकड़ कर बैठते हो। उस बैठने में भी तुम बैठे नहीं हो; तुम प्रतीक्षा कर रहे हो कि तुम्हें कोई विशिष्ट समझे।
सोचते हो कोई तुम्हें इस हरी घास पर अकेला बैठा हुआ देखे ?
सारी दुनिया से तुमको कुछ अलग लेखे! । ___ इसलिए मैं कहता हूं, जब तक संन्यासी वापिस संसार में न आ जाये, भूल ही जाये अलग होना
कोई अलग लेखे यह बात ही मिट जाये. तब तक परम संन्यासी न हआ। इसलिए महावीर की तमसे बात करता है. लेकिन कष्ण की प्रशंसा करता हैं। महावीर को तम्हें समझाता है. लेकिन अभीप्सा यही करता हूं कि किसी दिन तुम कृष्ण जैसे हो सकोगे। बाकी सब पड़ाव हैं। वहां से डेरा उखाड़ लेना पड़ेगा; वहां तंबू बांध कर सदा के लिए घर मत बांध लेना। तंबू गड़ा लेना, रात रुक जाना, थक जाओ विश्राम कर लेना; लेकिन चल पड़ना।
चलो उतर कर नीचे की सड़क पर जहां जीवन सिमट कर बह रहा है साहस की दिशा में जहां अतर्कित प्रेम कठोरताओं पर तरल है।
सबके बीच में जीवन सरल है। वह जो दूर-दूर भाग कर बैठा है जंगल में, वह सरल नहीं हो सकता। वह तो जटिल है। उसकी . जटिलता ही उसे यहां ले आई है। अब वह यहां जो अकड़ कर बैठा है, यह भी अहंकार है। लौट चलो वहां जहां साधारण जन हैं-सीधे-साधे, जरा भी विशिष्ट नहीं।
'प्रेम, करुणा, साक्षी और उत्सव-लीला
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