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नहीं पा रहे हो, अब और बड़े मकान की सोच रहे हो! ___मैंने सुना कि मुल्ला नसरुद्दीन एक सम्राट के घर नौकरी पर था। कमरा साफ कर रहा था सम्राट का। उसकी सुंदर शैया देखकर कई दफे मन लुभा जाता था उसका, कि एक दफा तो लेटकर देख लें! कैसा मजा सम्राट न लेता होगा! ऐसी गुदगुदी थी, मखमली थी, बहुमूल्य थी! सोने-चांदी से जड़ी थी! हीरे-जवाहरात लटके थे चारों तरफ। और उस दिन सम्राट दरबार में व्यस्त था तो उसने सोचा कि एक पांच मिनट लेट लें। लेट गया। लेटा तो झपकी लग गई। सम्राट आया कमरे में तो उसे बिस्तर पर लेटे देखा तो वह बहुत नाराज हुआ। उसे पचास कोड़े मारने का हुक्म दिया गया। कोड़े पड़ने लगे। हर कोड़े पर मुल्ला खूब जोर से खिलखिला कर हंसने लगा।
सम्राट बड़ा हैरान हुआ कि यह पागल है या क्या मामला है! होना चाहिए पागल। एक तो बिस्तर पर लेटा, जानते हुए कि यह अपराध है; और अब हंस रहा है! कोड़े पड़ने लगे और खून की धारें बहने लगी. चमडी उखड़ने लगी और वह खिलखिला कर हंस रहा है। आखिर सम्राट ने पछा 'रुको, मामला क्या है? कोड़े पड़ते हैं, तू हंसता क्यों है?' .
उसने कहा कि मैं इसलिए हंस रहा हूं कि मैं तो मुश्किल से पंद्रह मिनिट सोया, आपकी क्या गति होगी! पंद्रह मिनिट में पचास कोड़े! हिसाब तो लगाओ, मैं वही हिसाब लगा रहा हूं भीतर कि इस बेचारे की तो सोचो, आखिर में इसकी क्या गति होगी! ___ तुम जो सुख भोग लिए हो उनमें से कुछ पाया नहीं-सिवाय दुख के! जरा लौट कर देखो, तुम्हारे अतीत के चिह्नों को जरा गौर से देखो। घाव ही घाव हैं, पाया क्या? रस की आकांक्षा की थी, मिला कहां? अंगारे मिले! जल गये हो जगह-जगह, सारे प्राण जले पड़े हैं, छिदे पड़े हैं और अब तुम उन भोगों की भी आकांक्षा कर रहे हो जो अभी नहीं भोगे। उनको तो देखो जो भोग रहे हैं! तुम उनको देखकर जरा चौंको, जागो। क्योंकि ऐसा तो कभी नहीं होगा कि कुछ अनभोगा न बचे। अगर तुम यह सोचते हो कि सब भोग लेंगे, सब, तभी जागेंगे तो तुम कभी नहीं जागोगे। क्योंकि जगत तो अनंत है। यहां तो ऐसा कभी नहीं हो सकता कि तुम कह सको सब भोग लिए! थोड़ी तो बुद्धि का उपयोग करना होगा। थोड़ा विचार, थोड़ा ध्यान, थोड़ा देखना सीखना होगा!
'इस संसार में भोग की इच्छा रखने वाले और मोक्ष की इच्छा रखने वाले दोनों देखे जाते हैं। लेकिन भोग और मोक्ष दोनों के प्रति निराकांक्षी कोई विरला महाशय ही है!'
मेरे साथ अत्याचार! प्यालियां अगणित रसों की सामने रख राह रोकी, पहुंचने दी अधर तक बस आंसुओं की धार।
मेरे साथ अत्याचार! हर आदमी यही कह रहा है कि मेरे साथ अत्याचार हो रहा है। इतने रस पड़े हैं और मुझे भोगने का मौका नहीं! इतने रस पड़े हैं और हर जगह दीवाल खड़ी है। और संतरी खड़े हैं, पहरा लगा है। हर जगह रुकावट है।
मेरे साथ अत्याचार! प्यालियां अगणित रसों की सामने रख राह रोकी,
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4