Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 362
________________ सुनना चाहता, क्योंकि वकील साहिब, झगड़ा-झंझट की बात है। और जनता चिट लिख-लिख कर भेज रही है। सभापति को मजबूरन कहना पड़ता कि वकील साहिब, आपकी कविता सुनाइये । वे 'हे युवक'... वह शुरू कर देते । जब ऐसा बहुत बार हुआ तो एक दिन मुझसे वे बोले कि मामला क्या है, तुम्हीं क्यों आते हो ? सब कवि-सम्मेलन, सब सभायें, धर्म की सभा कि राजनीति की, कुछ भी हो, तुम क्या सभी के संयोजक हो ? मैंने कहा : नहीं, वे संयोजक तो सब अलग-अलग हैं, लेकिन वे जानते हैं कि मैं आपका भक्त हूं तो मुझे भेज देते हैं। धीरे-धीरे तो उनको शक होने लगा कि मैं... क्योंकि कोई उनकी कविता सु न चाहे, वह समझ में भी आये उन्हें कि कोई सुनना नहीं चाहता, सब लोग ऐसे उदास हो कर बैठ जायें, इधर-उधर देखने लगें कि फिर आ गये ये । नौबत यहां तक पहुंची कि मुझे जो अध्यक्ष इत्यादि सभाओं के होते वे मुझे पहले बुला कर कहते कि भाई, वकील साहिब को न बुला आना। हम तुम्हें मिठाई खिलायेंगे, अगर वकील साहिब को न लाये । अब एक ही कविता, वह जरूर उन्होंने चुराई होगी। कवि से हम आशा करते हैं कि वह नई कवितायें कहे; चित्रकार से कि नये चित्र बनाये; मूर्तिकार से कि नई मूर्तियां गढ़े। दार्शनिक से हम आशा करते हैं कि उसने जो कहा है, बस उसी को कहता रहे । नहीं, मैं कोई दार्शनिक नहीं हूं। मैं कोई पंडित नहीं हूं। मेरे वक्तव्य तुम कविताओं की तरह लेना । जिसको मैंने बांधना चाहा है, वह तो एक है; लेकिन उसे बहुत-बहुत अलग-अलग दिशाओं से बांधना चाहा है। जो मैं प्रगट करना चाहता हूं वह तो एक है; लेकिन बहुत - बहुत अलग-अलग रंगों में मैंने वे चित्र बनाये हैं। तुम समझ पाओगे यह बात तभी, जब तुम भी ऐसे खाली हो जाओगे जैसा खाली मैं हूं। मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि मैंने अब तक कोई ऐसा वक्तव्य नहीं दिया है जिसको मैं समझता हूं कि विरोधाभासी है। भिन्न-भिन्न वक्तव्य दिए हैं, अलग-अलग बातें कही हैं, अलगअलग ढंग से गीत को बांधा है; लेकिन जो मैंने कहा है, वह एक ही है। बहुत अलग-अलग माध्यमों में बांधा है। एक गीत को हम कविता की तरह कागज पर लिख सकते हैं और उसी गीत को हम संगीत की तरह वीणा पर बजा सकते हैं। अब कागज पर लिखी कविता में और वीणा के बजते-हिलते तारों में कोई भी संगति नहीं है। उसी कविता को हम चित्र की तरह चित्रित भी कर सकते हैं । तुमने देखा होगा, रागिनियों के चित्र देखे होंगे। हर रागिनी का चित्र भी बनाया जा सकता है। क्योंकि हर राग का रंग भी है । 'राग' शब्द का अर्थ ही रंग होता है। राग का अर्थ ही होता है रंग । हर राग का रंग है। तो अगर मैं शांति की कोई कविता कहूं तो शांति की वीणा पर धुन भी बजाई जा सकती है कि उस धुन को सुन कर शांत भाव पैदा होने लगे। और शांत चित्र भी बनाया जा सकता है नीले-हरे रंगों में, कि चित्र को देख कर शांति पैदा होने लगे । और शांति की प्रतिमा भी बनाई जा सकती है— बुद्ध की प्रतिमा कि उसे तुम गौर से देखते रहो तो तुम्हारे भीतर अशांति खोने लगे। ये अलग-अलग माध्यम 346 अष्टावक्र: महागीता भाग-4

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