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न कोई पहचान लेगा। तो उन्होंने खंभे पर लटका दिया बाहर। थोड़ी देर बाद मंडली निकली कबीर की भजन करते। पकड़े गये, क्योंकि कमाल का शरीर वहां लटका था। रोज की आदत, पुरानी आदत, ऐसी जल्दी तो छूटती नहीं-जब लोगों को भजन करते देखा तो वह ताली बजाने लगा! वह जो लाश लटकी थी, वह ताली बजाने लगी। ___ कहानी तो कहानी ही है; सच होनी चाहिए, ऐसा नहीं है। लेकिन बड़ी प्रतीकात्मक है कि कबीर चोरी को भी राजी हो गये; बेटे का सिर काटने को भी राजी हो गये; न चोरी से डरे न हिंसा से डरे। ऐसा हुआ है, ऐसा मैं कह नहीं रहा; लेकिन ऐसा भी हो तो भी आश्चर्य नहीं है। क्योंकि हमारे जो द्वंद्व हैं चोरी बुरी और अचोरी अच्छी, और हिंसा बुरी और अहिंसा अच्छी ये हमारे चंचलं चित्त की लहरों से उठी हुई धारणायें हैं। हेयोपादेय! यह अच्छा, यह बुरा; यह शुभ, यह अशुभ! कहीं तो कोई एक दशा होगी, न जहां कुछ शुभ रह जाता, न अशुभ। कहीं तो कोई एक दशा होगी निर्द्वद्व! कहीं तो एक सरलपन होगा, जहां भेद नहीं रह जाता! कहीं तो कोई एक स्थान होना चाहिए, एक स्थिति होनी चाहिए-जहां सब द्वंद्व खो जाते हैं, द्वैत लीन हो जाता है, अद्वैत का जन्म होता है। उसी अद्वैत की बात है।
निर्द्वद्वो बालवत धीमान् एवं एव व्यवस्थितः। हो जाये जो बच्चे जैसा निर्द्वद्व, द्वंद्व के पार...।
एक बात और यहां समझ लेना। बच्चे जैसा कहा है; बच्चा ही नहीं कहा है। क्योंकि अगर ऐसा हो तो सभी बच्चे संतत्व को उपलब्ध हो गये। लेकिन बच्चे संतत्व को उपलब्ध नहीं हैं। बच्चे तो अभी भटकेंगे। बच्चे तो भटकने की पहली दशा में हैं, भटकने के पूर्व। संत है भटकने के बाद। वर्तुल पूरा हो जाता है। जहां से चले थे, वहीं आ जाते हैं। अगर तुम्हारा जीवन ठीक-ठीक विकासमान हो, ठीक-ठीक वर्द्धमान हो, अगर तुम्हारा जीवन ठीक से चले-तो जब तुम पैदा हुए, जैसे तुम बच्चे थे' वैसे ही मरते वक्त पुनः तुम्हें बच्चे हो जाना चाहिए। तो वर्तुल पूरा हो गया। जहां से चले थे वहीं वापस आ गये; मूलस्रोत उपलब्ध हो गया।
यह अंतिम बालपन की बात हो रही है। बच्चों जैसे का अर्थ है : बच्चे नहीं; जो गुजर चुके जीवन के सारे अनुभवों से और फिर भी बच्चे जैसी सरलता को उपलब्ध हो गये हैं। बच्चे तो बिगड़ेंगे, बच्चे तो बिगड़ने को बने हैं। बच्चे तो अभी तैयार हो रहे हैं बिगड़ने के लिए। अभी निकाले जायेंगे बहिश्त के बाहर। अभी स्वर्ग खोयेगा। अभी उनकी जो निर्दोषता है, वह कोई उपलब्धि नहीं है, वह प्रकृति की भेंट है। सभी बच्चे सुंदर, सभी बच्चे शांत, सभी बच्चे समग्र पैदा होते हैं। फिर धीरे-धीरे विसंगतियां पैदा होती हैं, विरोध पैदा होते हैं। धीरे-धीरे बच्चे का बचपन खोता चला जाता है। पाप पैदा होता है। पाप का इतना ही अर्थ है : भेद शुरू हो गया। कपट पैदा होता है। कपट का इतना ही अर्थ है : हिसाब आ गया। सरलता चली गई। जैसे थे वैसे न रहे। जैसे नहीं हैं, वैसा बतलाने लगे। राजनीति आ गई। कूटनीति आ गई। ___ बच्चा तो भटकेगा। बच्चे को भटकना ही पड़ेगा, क्योंकि बिना भटके जगत के अनुभव से गुजरने का कोई उपाय नहीं। इस जगर के बीहड़ बन में भटकना पड़ेगा। संत वह है जो इस बीहड़ बन से गुजर गया; इस सबको देख लिया-अच्छे को भी, बुरे को भी और दोनों को असार पाया। जिन्होंने
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4