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आदमी रात विश्राम को उपलब्ध होता है, सुबह काम पर चला जाता है, और जो आदमी रात भर करवट बदलता है, सुबह भी उठने का मन नहीं करता; वह आदमी कहता है विश्राम नहीं पाया, कैसे जाऊं काम पर? आज तो पूरे दिन बिस्तर में पड़े रहने का मन होता है । जो आदमी सुबह बिस्तर में ही पड़ा रहे, क्या तुम यह कहोगे कि इसने विश्राम कर लिया ! तुम भी मानोगे यह बात कि इसका विश्राम पूरा नहीं हो पाया, इसीलिए पड़ा है। जो उठ गया सुबह, उठा ली कुदाली, उठा लिया फावड़ा, चल पड़ा काम पर, तुम भी कहोगे कि रात खूब विश्राम कर लिया मालूम होता है । गीत गुनगुनाते हो और गड्डा खोदने चले हो !
साक्षी तो विश्राम है। इसका प्रमाण कहां मिलेगा ? तुम्हारी लीला में; तुम्हारे जगत में फिर वापिस आने में। तुम्हारा नृत्य सबूत होगा, गवाही होगा कि साक्षी का भाव उपलब्ध हुआ । और वर्तुल पूरा हो जाता है।
दूसरा प्रश्न: बाल-बोध और सम्यक बोध को कृपा करके समझाइये |
प्रेम, करुणा,
ती
छोटा बच्चा अबोध है; उसके पास अभी कोई बोध नहीं है। अभी उसे होश नहीं है, बेहोश है। अभी उसका यह अबोध उसे खतरे में ले जाएगा, झंझटें पालेगा; झंझटें पालने के दिन करीब हैं। धन कमायेगा; महत्वाकांक्षा में दौड़ेगा; पागल होगा पद के लिए । प्रेम में पड़ेगा; विवाह करेगा। हजार तरह की झंझटें आने वाली हैं, क्योंकि अबोध है। अभी कुछ बोध तो नहीं है।
फिर जैसे-जैसे झंझटें गहरी होने लगेंगी, वैसे-वैसे समझ बढ़ेगी, प्रौढ़ता आयेगी और धीरे-धीरे यह दिखाई पड़ेगा कि क्या करने से झंझट हो जाती है ज्यादा और क्या करने से झंझट कम होती है। तो सम्यक बोध पैदा होगा। तब वह चुनाव करने लगेगा। वह कहेगा : यह करूं और यह न करूं; यह शुभ है, यह अशुभ है; यह ठीक, यह गलत । सम्यक का अर्थ है ठीक, जो ठीक है वह करूं । ठीक क्या है ? जिससे झंझट नहीं बढ़ती, शांति रहती है, सुख रहता है। गैर ठीक क्या है ? जिससे झंझट बढ़ती है, उपद्रव बढ़ते हैं और जीवन की शांति छिन जाती है, चैन छिन जाता है । तो सम्यक
साक्षी और उत्सव - लीला
न शब्द खयाल में लो : अबोध, सम्यक बोध और बाल-बोध ।
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