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ने देख लिया! अब एक जाल में फंस गया हूं। अब निकलना मुश्किल हो रहा है।
तुम अपने साधुओं को देखो, मुनियों को देखो-एक जाल है जिसमें फंस गये हैं। ___ एक जैन मुनि ने मुझे कहा कि फुर्सत ही नहीं मिलती कि कभी ध्यान कर लें। और साधु इसीलिए हुए थे कि ध्यान करना है। मगर फुर्सत मिले तब न! क्रियाकांड ऐसा है, उस क्रियाकांड में ही सब समय चला जाता है। फिर थोड़ा-बहुत समय बचता है तो श्रावक आ जाते हैं, उनके साथ सत्संग करना पड़ता है। सत्य अभी खुद भी मिला नहीं। उस सत्य को बांटना पड़ता है, सत्संग करना पड़ता है! जो बात खुद भी पता नहीं चली वह दूसरों को समझानी पड़ती है। और ज्यादा से ज्यादा परिणाम यही होगा कि इनमें से कोई श्रावक फंस जायेगा तो जो दुर्दशा इनकी हुई वही उसकी होगी। ऐसे जाल चलता है। ___ हमारे पास एक शब्द है 'गोरखधंधा'। अगर तरीकत में उलझ गये तो गोरखधंधा हो जाता है। गोरखधंधा आया है संत गोरखनाथ से। गोरखनाथ ने इतनी विधि-विधियां खोजी, इतनी नौली-धोती, ऐसा करो वैसा करो, कि उससे ही यह शब्द बन गया 'गोरखधंधा'—कि जो फंस गया गोरखधंधे में, वह फिर निकल नहीं पाता। विधियों का तो अनंत जाल है। तुम उससे कभी बाहर न आ सकोगे। बाहर आने का कोई उपाय ही न पाओगे। एक विधि में से दूसरी निकलती जाती है। दूसरी में से तीसरी निकलती आती है। . __तरीकत की एक सीमा है। सीमा का ध्यान रहे। एक मर्यादा है। मर्यादा की सूझ रहे, समझ रहे। फिर शरीअत है। तो ही शरीअत आयेगी। अगर तरीकत से ऊपर उठे, अगर गोरखधंधे में न खो गये, तो ही दूसरी घड़ी आयेगी। दूसरी घड़ी बड़ी आवश्यक है-तल्लीनता की। विधि-विधान से छूटे, जीवन थोड़ा सहज हुआ। अब बोध से जीयो, विधि-विधान से नहीं। अब ब्रह्ममुहूर्त में ही उठना है,
| जिद्द मत करो। अब जब उठ आओ तब ब्रह्ममुहूर्त समझो। और तुम धीरे-धीरे पाओगे कि ब्रह्ममुहूर्त में ही उठने लगे। अब ऐसी क्षुद्र बातों पर मत उलझे रहो कि किसने भोजन बनाया, ब्राह्मण ने बनाया कि गैर-ब्राह्मण ने बनाया। इन क्षुद्र बातों पर बहुत मत उलझे रहो। पार जाना है। थोड़ी तैयारी कर लो। ____ तुमने देखा हवाई जहाज उड़ता थोड़ी दूर, तो रास्ते पर चलता है—वह तरीकत। दौड़ता थोड़ा रन वे पर। फिर इसके बाद उठता है। अब दौड़ता ही रहे और कभी उठे ही नहीं, तो हवाई जहाज खाक हुआ। फिर एअर बस न हुई, बस ही हो गयी। फिर अपने बस में ही बैठ जाते, वही बेहतर थी। इसमें झटके ज्यादा होंगे और ज्यादा उपद्रव लगेगा। हवाई जहाज उड़ने को है। एक सीमा है, जहां तक वह दौड़ता है; फिर आ गयी सीमा रेखा, फिर वहां पर रुकता है, गति को पूरा कर लेता है; फिर उस गति के सहारे ऊपर उठ जाता है।
तरीकत की सीमा है। उसके पार जाना है। शरीअत तभी पैदा होगी। साधना तभी सुगंधित होगी, जब तुम विधि-विधान भूल जाओगे।
एक सूफी फकीर यात्रा पर जा रहा था-तीर्थ-यात्रा पर। उसने कसम खायी थी कि एक महीने का उपवास रखेंगे, यह पूरी यात्रा उपवासी-अवस्था में करेंगे। तीन-चार दिन बीते, एक गांव में आया। गांव में आया तो आते ही खबर मिली कि तुम्हारा एक भक्त है, अदभुत भक्त है। गरीब आदमी है।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4