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के इस देश में, ज्ञानियों के इस देश में, धार्मिकों के इस तथाकथित देश में बुद्ध चुप रह गये। बहुत मामलों में चुप रह जाते थे। कोई पूछता, ईश्वर है ? वे चुप रह जाते । जरा हिम्मत देखते हो बुद्ध की ! इसको मैं साहस कहता हूं। कितनी बड़ी उत्तेजना न रही होगी। कुछ भी उत्तर दे सकते थे। आखिर मूढ़ उत्तर दे रहे हैं तो बुद्ध को उत्तर देने में क्या अड़चन थी ? कुछ भी उत्तर दे सकते थे। लेकिन बुद्ध बिलकुल चुप रह जायेंगे। देखते रहेंगे उस आदमी की तरफ। वह कहेगा, 'आपने सुना नहीं ? मैं पूछता हूं ईश्वर है या नहीं? पता हो तो कह दें। अगर न पता हो तो वैसा कह दें ।' लेकिन बुद्ध फिर भी चुप हैं।
वह आदमी के ऊपर ही छोड़ दिया कि जो तुझे सोचना हो सोच लेना, लेकिन यह बात ऐसी है कि कही नहीं जा सकती । और इतना भी कहने को राजी नहीं हैं कि यह बात ऐसी है कि कही नहीं जा सकती। क्योंकि बुद्ध कहते हैं जो नहीं कही जा सकती उसके संबंध में यह कहना भी व्यर्थ है कि नहीं कही जा सकती। फायदा क्या? यह भी तो कहना हो गया न, थोड़ा-सा तो कह ही दिया। एक गुण तो बता ही दिया। उसका एक गुण तो यह हो गया कि उसे कहा नहीं जा सकता। तो परिभाषा थोड़ी तो बनी ! नकारात्मक सही; लेकिन इशारा तो हुआ । सीधा न सही, घूम-फिर कर सही, कान पकड़ा तो, उल्टी तरफ से सही। यह कहा कि नहीं कहा जा सकता उस संबंध में कुछ - तो तुमने इतना तो कह दिया उस संबंध में ।
बुद्ध बड़े ईमानदार हैं। वे चुप रह जाते हैं। उनमें से कोई होता समझदार तो बुद्ध के इस मौन को समझता। चरण छूता। आनंद-विभोर हो जाता। लेकिन वैसा तो सौ में कभी एकाध होता । निन्यान तो यही सोच कर जाते कि अरे, तो अभी इसको पता नहीं चला ! तो बेचारा अभी भी भटक रहा है। इससे तो हमारे गांव का पंडित अच्छा। दिन-दहाड़े चिल्ला कर तो कहता है कि हां, ईश्वर है और ईश्वर ने संसार बनाया। और न मानो तो वेद से प्रमाण लाता हूं। और ज्यादा गड़बड़ की तो लकड़ी उठा कर खड़ा हो जाता है। सिर तोड़ देगा । तर्क से मानो तर्क से, नहीं तो लट्ठ से मना देगा।
आखिर हिंदू-मुसलमान लड़ कर क्या कर रहे हैं ? जो तर्क से सिद्ध नहीं होता वह गर्दन काट कर सिद्ध कर रहे हैं। कहीं गर्दन काटने से सत्य सिद्ध होता है? तुम किसी को मार डालोगे, इससे क्या यह सिद्ध होता है कि तुम जो कहते थे वह सही था । सत्य का इससे क्या संबंध है?
मगर सौ में कभी एक जरूर ऐसा होता जो बुद्ध के मौन के उत्तर को स्वीकार कर लेता, समझता, शांत हो जाता। देखता इस अपूर्व घटना को । यह बड़ी महत्वपूर्ण घटना घटी कि बुद्ध चुप रह गये। ऐसा इसके पहले कभी न हुआ था।
बुद्ध ने मनुष्य जाति के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा । वह अध्याय यह था कि जो नहीं कहा जा सकता, मत कहो । चुप रह कर ही कहो । मौन से ही कह दो। फिर दूसरे पर छोड़ दो। अगर वह तुम्हें अज्ञानी समझता है तो वह जाने, यह उसकी समस्या है। तुम क्यों इससे परेशान ?
लेकिन मैं तुम्हारी अड़चन समझता हूं। तुम अगर उत्तर नहीं दे पाते तो लोग समझते हैं : अरे, तो तुम अभी भी अज्ञानी ! संन्यासी होकर भी अज्ञानी ! गेरुवा वस्त्र पहन लिया और अज्ञानी !
तुम कहना कि मैं अज्ञानी ही हूं। और ज्ञानी का कोई दावा मत करना । और मैं तुमसे कहता हूं: अज्ञान का यह स्वीकार खाद बन जायेगा तुम्हारे बीज को तोड़ने में । अज्ञान का यह स्वीकार वर्षा हो जायेगी तुम्हारे ऊपर। आखिर दूसरे के सामने सिद्ध करने की कोशिश कि मैं जानता हूं, क्या अर्थ
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4