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जाती है। न बोलने वाला बोलने वाला है, न सुनने वाला सुनने वाला है। जब न गुरु गुरु होता न शिष्य शिष्य होता, जब दोनों एक-दूसरे में ऐसे लीन हो जाते हैं कि पता नहीं चलता कि कौन कौन है; जब सीमाएं एक-दूसरे के ऊपर छा जाती, सीमाएं टूट जाती, बिखर जातीं-वहीं, वहीं रस है। रस तुम्हारा मार्ग है।
पांचवां प्रश्नः भगवान बुद्ध को किसी ने गाली दी तो उन्होंने कहा, मैं यह भेंट नहीं लेता, इसे वापिस ले जाओ। रमण महर्षि हठी-विवादी के पीछे लाठी ले कर भागे। और आप पर जब किसी ने जूता फेंका तो आपने उसे एक हाथ |धि नता दिखती ही है, है नहीं। भिन्नता में ले कर उसके जोड़े जूते की मांग की। दिखती ही है, क्योंकि परिस्थितियां आत्मोपलब्ध पुरुषों के व्यवहार में यह जो भिन्न-भिन्न हैं। बुद्ध को जिसने गाली दी, वही भिन्नता दिखती है, क्या उस पर कुछ प्रकाश आदमी मुझ पर जूता नहीं फेंका। मैं तो ठीक वहीं डालने की अनुकंपा करेंगे?
हूं। रमण को जिस आदमी ने अपमानित किया, '
____ वही आदमी मेरे ऊपर जूता नहीं फेंका। तो जो फर्क पड़ रहा है, वह बुद्धों में नहीं पड़ रहा है। जो फर्क पड़ रहा है वह जूता फेंकने वाले, गाली देने वाले, अपमानित करने वाले से पड़ रहा है। इस भेद को ठीक से समझना। ___ अगर मुझ पर जूता फेंकने वाला भी वही आदमी होता जिसने बुद्ध को गाली दी थी तो मैं भी उससे कहता कि मैं यह भेंट नहीं लेता। जिसने रमण का अपमान किया था, अगर वही आदमी होता तो मैं भी उसके पीछे लाठी ले कर दौड़ता।
जाग्रत चैतन्य का तो इतना ही अर्थ है कि जैसी परिस्थिति हो उस परिस्थिति में बिना पूर्व-नियोजन के, बिना पूर्व-आयोजन के जो घटे उसे घटने देना। बुद्धपुरुष तो दर्पण की भांति होते हैं। ___मैंने सुना, मुल्ला नसरुद्दीन को राह के किनारे एक दर्पण पड़ा हुआ मिल गया। उसने उसमें अपना
चेहरा देखाः 'चमत्कार हुआ कि बिलकुल पिता जी जैसे लगते हैं। मगर पिता जी ने फोटो कब उतरवायी? यह भी हद हो गयी! हमको पता ही न चला कि पिता जी ने फोटो कब उतरवा ली! और पिता जी तो मर भी चुके। तो उसने कहा, अच्छा हुआ मिल गयी पड़ी हुई। चलो घर ले चलें, सम्हाल कर रख लें।' उसने जा कर छिपा कर ऊपर रख दिया।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4