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जीवन्मुक्तस्य योगिनः।
और ऐसा व्यक्ति ही जीवन के सारे जाल से मुक्त हो जाता है। इस एक सूत्र से सारा जीवन रूपांतरित हो सकता है। इस एक सूत्र में सब समाया है-सब वेदों का सार, सब कुरानों का सार। इस एक छोटे से सूत्र में सारी प्रार्थनाएं, सारी साधनाएं, सारी अर्चनाएं समाहित हैं। इस एक छोटे-से सूत्र का विस्फोट तुम्हारे जीवन को आमल बदल सकता है।। ___ बस जैसे हो वैसे ही प्रभु को समर्पित हो जाओ। कह दो कि बस, जैसी तेरी मर्जी। जैसा रखेगा, रहेंगे। जो करायेगा, करेंगे। भटकायेगा, भटकेंगे। नर्क में डाल देगा, नर्क में रहेंगे। मगर शिकायत न करेंगे।
जैसे ही शिकायत से तुम मुक्त हो गये, प्रार्थना का जन्म होता है। और जैसे ही जो है उससे तुम राजी हो गये कि फिर तुम्हारे जीवन में सच्चिदानंद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं बचता। फिर परमात्मा ही परमात्मा का स्वाद है। फिर उसी-उसी की रसधार बहती है। फिर परम मंगल का क्षण आ गया।
इस सूत्र पर ध्यान करना। इस सूत्र का थोड़ा-थोड़ा स्वाद लेने की कोशिश करना। चौबीस घंटे । जब भी याद आ जाये, इस सूत्र का थोड़ा उपयोग करना। चौबीस घंटे में हजारों मौके आते हैं जब यह सूत्र कुंजी बन सकता है। जहां शिकायत उठे वहीं इस सूत्र को कुंजी बना लेना। सब शिकायत के ताले इस सूत्र से खुल जा सकते हैं। और शिकायत गिर जाये तो मंदिर के द्वार खुले हैं, प्रभु उपलब्ध है। तुम अपनी आकांक्षाओं, शिकायतों, अभिरुचियों, अनुरागों के कारण देख नहीं पा रहे, अंधे बने हो।
यथा जीवनं एव–बस ऐसा है जीवन, ऐसा है; इससे रत्ती भर भिन्न नहीं चाहिए।
जीसस ने सूली पर मरते वक्त यही सूत्र उदघोष किया है। आखिरी वचन में जीसस ने कहा : दाई विल बी डन। तेरी मर्जी पूरी हो, प्रभु! सूली तो सूली, मारे तो मारे। तेरी मर्जी से अन्यथा मेरी कोई मर्जी नहीं है। तेरी मर्जी के साथ मैं राजी हूं।
इसी क्षण जीसस समाप्त हो गये और क्राइस्ट का जन्म हुआ। इसी क्षण जीसस का मनुष्य रूप विदा हो गया, प्रभु-रूप पैदा हुआ। पुनरुज्जीवन हुआ। जीसस द्विज बने। जीसस ब्रह्मज्ञानी हो गये। इसी क्षण! ___ मंसूर को सूली लगायी गयी, हाथ-पैर काटे गये, तब भी वह हंस रहा था। आकाश की तरफ देख कर हंस रहा था। और किसी ने भीड़ में से पूछा कि तुम क्यों हंसते हो मंसूर, तुम्हें इतनी पीड़ा दी जा रही है?
उसने कहाः मैं इसलिए हंस रहा हूं कि ईश्वर यह हालत पैदा करके भी मेरे भीतर शिकायत पैदा नहीं कर पाया। मैं हंस रहा हूं। मैं ईश्वर की तरफ देख कर हंस रहा हूं कि कर ले तू यह भी, मगर मैं राजी हूं। तू किसी भी रूप में आये, तू मुझे धोखा न दे पायेगा। मैं तुझे पहचान गया। तू मौत की तरह आया है, स्वीकार है। मैं हंस रहा हूं ईश्वर की तरफ देख कर कि तूने धोखा तो खूब दिया, डर था कि शायद इसमें मैं धोखा खा जाता; लेकिन नहीं, तू धोखा नहीं दे पाया। मैं राजी हूं! अहोभाग्य है यह भी मेराः तू आया तो सही, मृत्यु की तरह सही! तूने मेरी परीक्षा तो ली!
अग्निपरीक्षा तो उन्हीं की ली जाती है जो वस्तुतः योग्य हैं। तो कठिनाई को परीक्षा समझना। संकट
तथाता का सूत्र-सेतु है
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