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जाता है। वे हमारे डाक्टर ललित बैठे हैं, उनसे तुम पूछ सकते हो। मरीज डाक्टर को देखने से पचास प्रतिशत ठीक हो जाता है। डाक्टर का आना ही पर्याप्त है, भरोसा आ गया।
गुरु के मिलते ही पचास प्रतिशत तो सब ठीक हो जाता है—मिलते ही! मगर यहीं मत रुक जाना। जब शब्द सुन कर ऐसा हो सकता है तो सत्य के अनुभव से कैसा होगा! याद रखना, भूलना मत। अनेक शब्द में ही उलझ कर रह जाते हैं, इसलिए तुम्हें चेताता हूं।
यह एक रश्मि! पर छिपा हुआ है इसमें ही ऊषा बाला का अरुण रूप दिन की सारी आभा अनूप जिसकी छाया में सजता है जग राग-रंग का नवल साज यह एक रश्मि! यह एक बिंदु! पर छिपा हुआ है इसमें ही जल श्यामल मेघों का वितान विद्युत बाला का बज्र गान जिसको सुन कर फैलाता है जग पर पावस निज सरस राज
यह एक बिंदु! जो कहा जा रहा है, वह तो एक बूंद है। जिसकी तरफ बूंद इशारा कर रही है, वह महासागर है। बूंद तो निमंत्रण है, बुलावा है। अगर बूंद का बुलावा तुम्हें सुनाई पड़ गया तो चल पड़ना नाचते हुए सागर की तरफ अनुभव के सागर की तरफ! तब बहुत होगा, अपार होगा। तुम सम्हाल न सकोगे, इतना होगा। इतना होगा कि तुम उसमें बह जाओगे। तुम बचोगे ही नहीं, इतना होगा।
और एक बूंद भी सुख देती है। गर्मी के उत्ताप के बाद, जब भूमि फट गई होती है, दरारें पड़ गई होती हैं, और प्रतीक्षा होती है आषाढ़ की और आकाश में पहले बादल घिरते हैं और छोटी-सी बूंदा-बांदी हो जाती है, तो भी एक तृप्ति की लहर फैल जाती है। अभी प्राणों तक पहुंच भी तो नहीं सकती बूंद, क्योंकि बूंद अभी नई-नई आई, थोड़ी-सी आई; अभी तो ऊपर की धूल को भी गीला न कर पायेगी; अभी तो पृथ्वी के प्राणों तक कैसे पहुंचेगी! लेकिन खबर आ गई, वर्षा करीब है।
यह भूमि भली यह बहुत जली यह और न अब जल को तरसे घन बरसे घन बरसे
प्रम, करुणा, साक्षी और उत्सव-लीला
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