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समझाओगे कि कांटों पर लेटने से मोक्ष मिलता है, देखो मैं लेटा ! देखो मेरी कट गई, तुम भी कटवा लो! इससे बड़ा आनंद मिलता है !
कांटों पर लेटने से बड़ा आनंद मिलता है! किसको तुम धोखा दे रहे हो ? हां, कांटों पर लेटने से इतना ही हो सकता है कि तुम्हारी संवेदनशीलता धीरे-धीरे क्षीण हो जाये, तुम्हारी चमड़ी पथरीली हो जाये, तुम चट्टान जैसे हो जाओ। और जीवन का रहस्य तो फूल जैसे होने में है, चट्टान जैसे होने नहीं है। जीवन का रहस्य तो कोमलता में है। जीवन का रहस्य तो स्त्रैणता में है। परुष हो गये, अति पुरुष हो गये - उतने ही कठोर हो जाओगे; उतना ही तुम्हारे जीवन से काव्य खो जायेगा, माधुर्य खो जायेगा, संगीत खो जायेगा, गीत खो जायेगा, तुम्हारे भीतर का छंद समाप्त हो जायेगा ।
तो तुमने कांटों पर लेटे आदमी को कभी कोई प्रतिभाशाली आदमी देखा? तुम जा कर काशी में अनेक को पा सकते हो कांटों पर लेटे, लेकिन कभी तुम्हें प्रतिभा के दर्शन होते हैं वहां ? तुमने कांटों पर लेटे किसी आदमी को अलबर्ट आइंस्टीन की प्रतिभा जैसा देखा ? कांटों पर लेटे आदमी को तुमने कभी बीथोवन या तानसेन या कालीदास या भवभूति, एन्स, ऐसी किसी ऊंचाइयों को छूते देखा ? तुमने इन कांटों पर लेटे आदमियों से उपनिषद पैदा होते देखे, वेद की ऋचाओं का जन्म होते देखा ?
ये कांटों पर लेटे आदमियों को जरा गौर से तो देखो, इनका सृजन क्या है ? इनकी सृजनात्मकता क्या है ? इनसे होता क्या है ? बस कांटे पर लेटे हैं, यही गुणवत्ता है! इतना ही काफी है परमात्मा का सौभाग्य ? और परमात्मा के प्रति अहोभाव प्रगट करने के लिए कांटों पर लेट जाना काफी है ? यह भी खूब धन्यवाद हुआ कि परमात्मा जीवन दे और तुम कांटों पर लेट गये ! और परमात्मा फूल जैसी देह दे और तुम उसे पथरीला करने लगे !
नहीं, इससे होगा क्या? किस बात को तुम आमूल क्रांति चाहते हो ?
जीवन तो जैसा है वैसा ही रहेगा; वैसा ही रहना चाहिए। हां, इतना फर्क पड़ेगा... और वही वस्तुतः आमूल क्रांति है। आमूल का मतलब होता है मूल से । चाय पीना मूल में तो नहीं हो सकता, न सिगरेट पीना मूल में हो सकता है और न बिस्तर पर सोना और न कांटों पर सोना मूल में हो सकता है । न भोजन करना और न उपवास करना मूल में हो सकता है। मूल में तो साक्षी भाव है।
मूल क्रांति का अर्थ होता है : जो अब तक सोये-सोये करते थे, अब जाग कर करते हैं। जागने के कारण जो गिर जायेगा गिर जायेगा, जो बचेगा बचेगा; लेकिन न अपनी तरफ से कुछ बदलना है, न कुछ गिराना, न कुछ लाना। साक्षी है मूल ।
शब्दों के अर्थ भी समझना शुरू करो। 'आमूल' कहते हो, आमूल क्रांति नहीं हुई। आमूल क्रांति का क्या मतलब है? अब सिर के बल चलने लगोगे सड़क पर, तब आमूल क्रांति हुई ? क्योंकि पैर के बल तो साधारण आदमी चलते हैं; तुम सिर के बल चलोगे तो आमूल क्रांति हो गई। लोग तो भोजन खाते हैं, तुम कंकड़-पत्थर खाने लगोगे, तब आमूल क्रांति हो गई ?
आमूल क्रांति का अर्थ है : लोग सोये हैं, मूच्छित हैं, तुम जाग गये, तुम साक्षी हो गये। अब देह को भूख लग आती है तो लगती है, और देह भोजन कर लेती है, तृप्त हो जाती है; तुम पीछे खड़े देखते हो शांत भाव से । भूख लगी, भोजन का आयोजन कर देते; तृप्ति हो जाती, तुम देखते रहते । तुम द्रष्टा हुए।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4