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जिसने जाना कि वह जो परम नियम है, उसका ही मैं अंग हूं, उससे भिन्न नहीं।
तो तथाता है मंजिल।
ऐसा समझो। लाओत्सु का ताओ है सिद्धांत, साक्षी है साधन, तथाता है सिद्धि। तीनों जुड़े हैं। तीनों साथ-साथ हैं। इसे कहो त्रिवेणी। इसे कहो संगम। इसे कहो ईसाइयों का ट्रिनिटी का सिद्धांत, कि तीन हैं। या कहो हिंदुओं की त्रिमूर्ति, कि प्रभु के तीन रूप हैं। यह महानतम त्रिकोण है जो अस्तित्व के भीतर छिपा है। तथाता उपलब्धि है; पहुंच गये। साक्षी मार्ग पर है। और जहां पहुंचना है, वह है ताओ।
तो तीनों में भेद तो थोड़ा-थोड़ा है; अभेद बहुत है। क्योंकि तीनों एक ही चीज से जुड़े हैं। और तीनों को समझो, यह अच्छा है; किसी एक में मत उलझ जाना। क्योंकि जो ताओ की तरफ आंख न रखेगा, वह कभी तथाता को उपलब्ध न हो सकेगा। खोज तो ताओ की करनी है: जो मिलेगा वह तथाता है। क्योंकि जब मिलते हो तुम, उस परम स्थिति में जब नदी गिरती है सागर में, तो ऐसा थोड़े ही रह जाता है कि सागर अलग और नदी अलग। जब सागर से मिलन होता है नदी का तो नदी सागर हो जाती है। खोजती थी सागर को; खो देती है स्वयं को। जिस दिन खोज पूरी होती है उस दिन नदी खो जाती है और सागर ही बचता है। ____ताओ की खोज है। सत्य की खोज कहो; सत्य की खोज है। ऋत् की खोज है। धर्म की खोज है। लेकिन जिस दिन तुम जान लोगे उस दिन तुम धर्ममय हो जाओगे। उस दिन तुम सत्यमय हो जाओगे।
कैसे तुम जानोगे?
जानने की प्रक्रिया साक्षी है। जागोगे तो जानोगे। सोये रहे तो न जान पाओगे। इसलिए तीनों जुड़े हैं, और तीनों में थोड़ा-थोड़ा भेद है। भिन्नता कहनी चाहिए, भेद नहीं।
दूसरा प्रश्न: मैं कब तक भटकता रहूंगा? दिल की लगी पूरी होगी या नहीं?
ज ब तक मैं है, तब तक भटकना पड़े।
जब तक हो, तब तक भटकन है। तुम्ही हो भटकन। कोई और नहीं भटका रहा है। मिटो तो मिलन हो जाये। बने रहे, अटके रहोगे। गांठ यही तो खोलनी है। और ग्रंथि क्या है ? निग्रंथ होना है। यही तो ग्रंथि है, यही तो गांठ है कि मैं
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4