Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 403
________________ पहला प्रश्नः अष्टावक्र-गीता में जीवन-मुक्त की चर्चा कई बार हुई है। जीवन-मुक्त पर कुछ प्रकाश डालने की अनुकंपा करें। | वन जैसा है वैसी ही मृत्यु होगी। जो उस पार है वैसा ही इस पार होना | पड़ेगा। जैसे तुम यहां हो वैसे ही वहां हो सकोगे। क्योंकि तुम एक सिलसिला हो, एक तारतम्य हो। ऐसा मत सोचना कि मृत्यु के इस पार तो अंधेरे में जीयोगे और मृत्यु के उस पार प्रकाश में। जो यहां नहीं हो सका, वह केवल शरीर छूट जाने से नहीं हो जायेगा। तुम तुम ही रहोगे। मौत से कुछ भेद नहीं पड़ता है। तुम आनंदित थे जीवन . में, तो मृत्यु के पार भी आनंदित रहोगे; मृत्यु के मध्य भी आनंदित रहोगे। तुम दुखी थे तो मृत्यु तुम्हें . सुख न दे पायेगी। अगर तुम जीवन में नर्क में हो तो जीवन के पार भी नर्क ही तुम्हारी प्रतीक्षा करेगा। इसे तुम ठीक से समझ लो। 'आदमी बहुत बेईमान है। टालने की बड़ी इच्छा होती है। वह सोचता है : कर लेंगे। मुक्त भी होना तो मृत्यु के बाद, अभी तो कुछ जल्दी नहीं है। प्रभु स्मरण भी करना है तो कर लेंगे मरते समय, कर लेंगें तीर्थ-यात्रा, मरते समय सन लेंगे पाठ। बढापे में संन्यास। • कल पर हम छोड़ते हैं; आज तो जी लें उसी ढांचे में, जिसमें हम जीते रहे हैं। आज तो कर लें बुरा, कल अच्छा कर लेंगे। अच्छे को हम टालते हैं, बुरे को हम कभी नहीं टालते। तो बंधन तो आज, मुक्ति कल-ऐसा हमारा गणित है। इस गणित को तोड़ने का उपाय है जीवनमुक्त सत्य में। . जीवन में ही मुक्ति हो, तो ही मुक्ति होगी। जीते-जी जागोगे, तो ही जागोगे। सोचो, जीते-जी जो न जाग सका, वह मरने में कैसे जागेगा? मृत्यु तो जीवन का चरम निष्कर्ष है। मृत्यु तो कसौटी है। तुम्हारे जीवन भर का सारा सार-संचित मृत्यु के क्षण में तुम्हारी आंखों के सामने प्रगट हो जायेगा। मृत्यु तो निर्णायक है। वह तो सारे जीवन की कथा का सार-निचोड़ है। मृत्यु में जीवन समाप्त नहीं होता, तुम सारे जीवन को इकट्ठा करके नई यात्रा पर निकल जाते हो। अगर तुम क्रोधित थे तो तुम्हारी मृत्यु में भी क्रोध होगा। अगर तुम दुखी थे तो दुख की घनी अमावस होगी। अगर तुम्हारे जीवन का प्रत्येक पल प्रफुल्ल था, आनंदमग्न थे, नृत्य था, गीत था, संगीत था, सुगंध थी-तो मृत्यु महोत्सव हो जायेगी। व्यक्ति जैसा जीता वैसा ही मरता। हम अलग-अलग जीते ही नहीं, हम अलग-अलग मरते भी

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