Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 406
________________ परमात्मा के बीच एक विरोध खड़ा कर दिया, एक द्वंद्व खड़ा कर दिया है। और बड़े आश्चर्य की बात है, यह उन्हीं लोगों ने जो अद्वैत की बात करते हैं; उन्हीं लोगों ने जो कहते हैं निर्द्वद्व हो जाओ, जिनकी सारी शिक्षा निद्वंद्व की है, उन्हीं ने यह भेद खड़ा कर दिया है। तो तुम्हें बड़ी फांसी लग गई है, तुम्हारे गले में। ऐसा लगता है जीवन में रस लिया तो अपराध हो गया और जीवन में रस न लो, तभी परमात्मा मिलेगा। अब जीवन में रस बिलकुल स्वाभाविक है-परमात्मा का ही दिया हुआ है। वह रसधार उसी ने बहाई है। तुम्हारा हाथ नहीं है जीवन के रस में। तुम्हारा हाथ होता तो तुम अलग भी कर लेते। तुम्हारे हाथ में परमात्मा का ही हाथ पिरोया हुआ है। तुम अलग न कर पाओगे। यह कोई तुम्हारी मर्जी थोड़े ही है कि जीवन में रस है, कि फूल सुंदर लगते हैं, कि संगीत मस्ती से भर देता है, कि नीले आकाश को देख कर मन शांत होता है, कि सौंदर्य को देख कर मन पुलकित होता है। यह रस बहता है; यह तुम्हारा कुछ अपना निर्णय थोड़े ही है। ऐसा तुमने पाया है। ऐसी प्रभु की मर्जी है। जार्ज गुरजिएफ कहा करता था कि अब तक जमीन पर जो धर्म रहे हैं, करीब-करीब सभी परमात्मा-विरोधी हैं। यह बात बहुत अजीब-सी लगती है; क्योंकि धर्म तो परमात्मा की पूजा करते हैं और गुरजिएफ कहता है, परमात्मा-विरोधी! और गुरजिएफ कहता है, तुम्हारे जो अब तक के महात्मा हैं, वे सब परमात्मा के दुश्मन हैं। क्योंकि वे सब उस चीज के विपरीत तुम्हें ले जाते हैं जो परमात्मा ने दी है। परमात्मा ने दिया है नाच, यह सारा जीवन उत्सव से भरा है। यहां फूल-फूल पत्ती-पत्ती पर नृत्य की छाप है। यहां सब तरफ इंद्रधनुषी रंग हैं। तुम्हारे महात्मा में कोई इंद्रधनुष होता ही नहीं, तुम्हारे महात्मा में कोई फूल खिलता ही नहीं। तुम्हारा महात्मा करीब-करीब मुर्दा है जीवन से क्षीण और रिक्त। नदी कभी वहां बहती थी, अब नदी बहती नहीं। सब सूख गया है। सिर्फ रेत का पाट भर पड़ा रह गया है, सूखी धार रह गई है। नदी बहती थी, इसका स्मरण रह गया है। नदी अब बची नहीं। परमात्मा सब जगह हरा है। इस हरियाली के विपरीत जाने की कोई जरूरत नहीं। इस हरियाली में ही उसे खोज लेना है। तो जो सच में परम ज्ञानी हुए-अष्टावक्र कि कबीर कि नानक कि मुहम्मद कि लाओत्सु–उन सबकी शिक्षा का एक बहुत महत्वपूर्ण सार है, और वह यह है कि जहां-जहां जीवन है वहां-वहां परमात्मा छिपा है। तुम्हें दिखाई न पड़े तो अपनी आंख आंजो, अपनी आंख पर ध्यान का काजल लगाओ। तुम्हें दिखाई न पड़े तो समझना कि पर्दा तुम्हारे ऊपर है। अपना पर्दा हटाओ। अपने हृदय के किवाड़ खोलो। चूंघट हटाओ। लेकिन जीवन में ही परमात्मा है। जीवन में ही मोक्ष है। जापान के बहुत बड़े फकीर रिझाई ने कहा है : संसार और निर्वाण एक ही हैं। जीवन-मुक्त में दोनों मिल जाते हैं। जीवन-मुक्त अद्वैत की परम अवस्था है: जीवन भी मिल गया, मोक्ष भी मिल गया। जहां जीवन और मोक्ष का संगम होता है वहां जीवन-मुक्त। साधारणतः तुम्हें जीवित आदमी मिलेंगे, उनमें मोक्ष नहीं है। और तुम्हें मुर्दा आदमी मिलेंगे, उनमें मोक्ष है, लेकिन जीवन नहीं है। दोनों चूक गये। ___ तुमने पुरानी कहानी सुनी है? एक जंगल में आग लग गई और एक अंधा और एक लंगड़ा दोनों उस जंगल में थे, दोनों ने विचार किया कि बचने का एक ही उपाय है कि लंगड़ा अंधे के कंधों पर 390 अष्टावक्र: महागीता भाग-4

Loading...

Page Navigation
1 ... 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444