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छोटा-सा दीया है— मोमबत्ती जैसा। लेकिन इसी से सूरज को पुकारा जाता है। इसी ने सूरज को टेरा| इस छोटी-सी मोमबत्ती की ज्योति में जो जल रहा प्रकाश, वह सूरज का ही है। तुम स्वीकार करो।
परमात्मा ने इस सारे अस्तित्व को स्वीकार किया है, अन्यथा यह हो ही न। यह परमात्मा ने सारा खेल अंगीकार किया है, अन्यथा यह हो ही न। इसलिए तो हम इसे लीला कहते हैं । परमात्मा अपनी लीला में कैसा तल्लीन है ! कहीं कोई अस्वीकार नहीं है। तुम कितने ही बुरे होओ, फिर भी तुम परमात्मा को अंगीकार हो। तुम कितने ही बुरे, कितने ही पापी, कितने ही दूर चले गये होओ, फिर भी परमात्मा को अंगीकार हो ।
जीसस कहते थे : जैसे कोई गड़रिया सांझ अपने भेड़ों को ले कर लौटता है, अचानक गिनतीं करता है और पाता है कि एक भेड़ कहीं खो गयी, तो निन्यानबे भेड़ों को असहाय जंगल में अंधेरे में छोड़कर उस एक भेड़ को खोजने निकल जाता है। लेकर लालटेन, घाटियों में आवाजें देता है और जब वह भेड़ मिल जाती है तो क्या करता है, पता है? जीसस कहते हैं: उस भेड़ को कंधे पर रखकर लौटता है।
परमात्मा, जो दूर से दूर चला गया है, उसको भी कंधे पर रखे हुए है। भटके को तो और प्यार से रखे हुए है। जैसे परमात्मा ने सबको अंगीकार किया है, ऐसे तुम भी अंगीकार कर लो। तो तुम्हारे भीतर का दीया जलेगा और तुम्हारे भीतर की छोटी-सी ज्योति सूरज को पुकारेगी। तुम सूरज जैसे हो जाओगे। छोटे से घेरे में सही, लेकिन विराट उतरेगा ! तुम्हारे आंगन में आकाश उतरेगा !
तीसरा प्रश्न : रोज सुनता हूं, आंसुओं में स्नान होता है, हृदय धड़कता है— चाहे आप भक्ति पर बोलें चाहे ध्यान पर। जब गहराई में ले जाते हैं तो गंगा-यमुना स्नान हो जाता
है। आपको साकार और निराकार रूप में प्रे
देखकर आनंद से भर जाता हूं, धन्य हो जाता हूं। प्रेम और ध्यान तब दो नहीं रह जाते। दोनों से उस एक की ही झलक आती है । अनुगृहीत हूं। कोटि-कोटि प्रणाम !
म और ध्यान यात्रा की तरह दो हैं, मंजिल की तरह एक । जब भी ध्यान घटेगा, प्रेम अपने-आप घट जायेगा । और जब भी प्रेम घटेगा, ध्यान अपने-आप घट जायेगा । तो जो चलने वाला है अभी, वह चाहे प्रेम चुन
ले चाहे ध्यान चुन ले, लेकिन जब पहुंचेगा तो
दूसरा भी उसे मिल जायेगा। यह तो असंभव है कि कोई ध्यानी हो और प्रेमी न हो। ध्यान का परिणाम
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4