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उसने अपना झोपड़ा जमीन सब बेच दी और तुम्हारे स्वागत में भोज का आयोजन किया है। और सारे गांव को निमंत्रित किया है।
फकीर के शिष्यों ने कहा : यह कभी नहीं हो सकता। हमने कसम खायी है, एक महीने उपवास रहेगा। हम अपने व्रत से कभी डांवांडोल नहीं हो सकते।
लेकिन जब उन्होंने आ कर फकीर को कहा, फकीर ने कहा, फिर ठीक है। कसम का क्या, कोई र्जा नहीं ।
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शिष्य तो बड़े हैरान हुए कि जिस पर इतना भरोसा किया... यह तो पाखंडी मालूम होता है। कसम खायी और चार दिन में बदल गया ! भोजन के प्रति इसकी लोलुप दृष्टि मालूम होती है। मगर अब सबके सामने कुछ कह भी न सके। लेकिन जब गुरु ही भोजन कर रहा था तो उन्होंने कहा, अब हम भी क्यों छोड़ें। जब यही सज्जन भ्रष्ट हो गये तो हम तो इन्हीं के पीछे चल रहे थे, अब हमें क्या मतलब!
सब ने भोजन किया। रात जब लोग विदा हो गये तो शिष्यों ने गुरु को पकड़ लिया और कहा कि क्षमा करें, आप यह बतायें, यह क्या मामला है? यह तो बात ठीक नहीं।
गुरु ने कहा : क्या बात ठीक नहीं ?
'कि हमने एक महीने की कसम खायी थी और आपने चार दिन में तोड़ दी।'
गुरु ने कहा : कौन तुम्हें रोक रहा है। चार दिन छोड़ो, आगे का एक महीना उपवास कर लेंगे। एक महीने की कसम खायी थी न, जिंदगी पड़ी है, घबड़ाते क्यों हो? मगर इस गरीब को तो देखो ! अब इससे यह कहना कि हमने एक महीने की कसम खायी है... इसने जमीन बेच दी, मकान बेच दिया। इसके पास कुछ भी नहीं है। इसने सारे गांव को निमंत्रित किया... इसका गुरु गांव में आता है। इसको तो पता नहीं हमारी कसम का । अब कसम की बात उठानी जरा हिंसात्मक हो जायेगी। इस गरीब के प्रेम को भी तो देखो। हमारी कसम का क्या है? एक महीना अभी आगे कर लेंगे। तुम इतने घबड़ाते क्यों हो ?
इसको मैं कहता हूं, यह आदमी तरीकत से ऊपर उठा । इसके पास अब बोध है; समझपूर्वक जीता है। अब ऐसा कोई तौर-तरीके में बंध जाने का पागलपन नहीं है। कोई तौर-तरीका जेलखाना नहीं है, कि ऐसा ही होना चाहिए।
अक्सर तुम पाओगे कि लोग अपने आपको जेलखाने में रूपांतरित कर लेते हैं, खुद ही अपने हाथ से ! उससे सावधान रहना । जब भी तुम्हें कोई धार्मिक आदमी ऐसा मालूम पड़े कि गहरी परतंत्रता में जी रहा है, तो समझना कि वह चूक गया, उसने पड़ाव को मंजिल समझ लिया ।
तल्लीनता इतनी गहरी हो जाये कि 'मैं' बिलकुल डूब जाये। तो तीसरी घड़ी आयेगी जब तुम्हारा 'मैं' बिलकुल शून्य हो जाता है। तब प्रभु की किरण तुम्हारे गहन अंधकार में उतरती है और तुम्हें रूपांतरित करती है। तो जब तक प्रभु की किरण न उतरे तब तक समझना कि 'मैं' अभी बाकी है— कहीं न कहीं छिपा होगा। कहीं किसी कोने में बैठ कर देख रहा होगा, राह देख रहा होगा, कि अरे अभी तक आये नहीं, प्रभु का आगमन नहीं हुआ ! अगर ऐसा कोई तुम्हारे भीतर छिपा हुआ देख रहा हो प्रभु का आगमन होगा भी नहीं। कोई अपेक्षा कर रहा हो... कोई बैठा, वहां बैठा हो और कह रहा हो कि अभी तक नहीं आये, बड़ी देर हो गयी — और मैंने इतना किया, इतना किया; कितनी साधना की,
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तू स्वयं मंदिर है
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