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भरना है। एक-एक क्षण में तुम धीरे-धीरे प्रार्थना के मनके पिरोते चले जाओ तो मृत्यु के समय तक तुम्हारे जीवन की माला तैयार हो जायेगी।
मुक्का अर्थ होता है, जिसने स्थगन नहीं किया; जो बाट नहीं जोह रहा; जो आज अपने को रूपांतरित कर रहा है; इस क्षण का उपयोग कर रहा है; इस अवसर को खाली नहीं जाने दे रहा है । इस अवसर की जो क्षमता है उसका पूरा सदुपयोग कर लो।... यह एक आयाम ।
दूसरा आयाम जीवन - मुक्त का होता है : भगोड़े मत बनो। जीवन से भाग कर मुक्ति नहीं है । पहला अर्थ : मृत्यु की आशा मत करो। जो जीवन में नहीं मिलेगा वह मृत्यु में भी नहीं मिलेगा। दूसरा अर्थ: जीवन से भागो मत, भगोड़े मत बनो । हिमालय की गुफा - कंदराओं में नहीं है मुक्ति। यहां, जहां जीवन का संघर्ष है, बाजार में, ठेठ भीड़-भाड़ में, यहीं मुक्ति है। कहीं जाओ मत। कहीं जाने
कुछ हल न होगा। तुम तुम ही रहोगे। तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे। तुम हिमालय की गुफा में बैठ जाओगे, इससे क्या फर्क पड़ेगा? न बैठे अपने घर में, बैठ गये हिमालय की गुफा में - इससे क्या फर्क पड़ेगा? तुम्हारा चित्त तो न बदल जायेगा। तुम्हारी चैतन्य की धारा तो अविच्छिन्न वही की वही रहेगी। इतना ही होगा कि गुफा और अपवित्र हो जायेगी तुम्हारी मौजूदगी से । तुम गुफा में भी बाजार की दुर्गंध ले आओगे।
जीवन - मुक्त का अर्थ होता है : भागो मत; जहां हो वहीं बदलो । बदलाहट असली सवाल है; भगोड़ापन नहीं; पलायन नहीं। तो घर में हो... तो घर में पति हो तो पति, पत्नी हो तो पत्नी, बाप हो तो बाप, दूकानदार कि मजदूर, जहां हो, जैसा है।
अष्टावक्र ने बार-बार कहा है : जीवन जैसा मिले उसे वैसा ही जी लेना; अन्यथा की मांग न करना । जीवन जैसा मिले उसे परम स्वीकार से जी लेना । प्रभु ने जो दिया है उसमें राज होगा। प्रभु ने जो दिया है उसमें प्रयोजन होगा; उसमें कुछ कीमिया होगी; तुम्हें बदलने का कोई उपाय छिपा होगा । दुख दिया है तो तुम्हें निखारने को दिया होगा । दुख में आदमी निखरता है; सुख में तो जंग खा जाता है। सुख ही सुख में तो आदमी मुर्दा-मुर्दा, थोथा हो जाता है।
तुम देखते, जिसको तुम तथाकथित सुखी आदमी कहते हो, वह कैसा पोचा हो जाता है ! उसके जीवन में कोई गहराई नहीं होती। संघर्ष ही न हो तो गहराई कहां! और जीवन में दुख न झेला हो तो निखार कहां! सोना तो आग से गुजर कर ही स्वच्छ होता है, सुंदर होता है, शुद्ध होता है। जीवन की आग से ही गुजर कर आत्मा भी शुद्ध होती है, निखरती है, स्वर्ण बनती है।
तो जो हो, जैसा हो, उससे भागना मत, वहीं जागना । असली प्रक्रिया जागने की है। जो करो, होशपूर्वक करना। दुख आ जाये, दुख को भी होशपूर्वक झेलना, अंगीकार कर लेना । इंकार जरा भी न करना। स्वीकार-भाव से मान कर कि जरूर कोई प्रयोजन होगा - और निश्चित तुम पाओगे प्रयोजन है। दुख तुम्हें बदलेगा, मांजेगा, निखारेगा, ताजा करेगा, और किसी बड़े सुख के लिए तैयार करेगा। जीवन तपश्चर्या है।
जीवन - मुक्त का दूसरा आयाम, दूसरा अर्थ: जीवन में ही मुक्ति है, इससे भिन्न नहीं ।
और तीसरा अर्थ । साधारणतः तथाकथित धर्मगुरुओं ने मोक्ष को और जीवन को विपरीत बना दिया है। जैसे अगर तुम्हारा जीवन में रस है तो परमात्मा में तुम विरस हो गये। साधारणतः जीवन और
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