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कल है, परसों है, अगले जन्म में है, स्वर्ग में है, कहीं और है! कहीं और है सुख'–यही धारणा तृष्णा है। जब यहां नहीं है, कहीं और है तो कहीं दौड़ना पड़ेगा। यहां तो है नहीं, बैठने से क्या होगा! दौड़ो, भागो! आपाधापी करो! श्रम करो। नहीं दौड़े तो हार जाओगे। आज को कुर्बान करो कल के लिए। आज को बलिदान करो भविष्य के लिए। आज तो है नहीं। ___तुम जैसे हो, ऐसे तो सुखी हो नहीं सकते, तो कुछ और बनने की कोशिश करो। ज्यादा धन हो पास, बड़ा मकान हो पास, प्रतिष्ठा हो या पुण्य हो, चरित्र हो, शील हो, ध्यान हो-कछ करो। __ तृष्णा का अर्थ है : तुम जैसे हो वैसे संतोष नहीं मिल रहा। और तृष्णा छोड़ने का इतना ही अर्थ है कि अभी, यहीं, तुम जैसे हो ऐसे ही आनंदित हो जाओ! तृष्णा छोड़ने का अर्थ है : आनंदित अभी होने की कला! तुम जानते हो आनंदित कभी होने की वासना; अभी नहीं! अभी तो कैसे हो सकता है!
अष्टावक्र की सारी घोषणा यही है। यह महा क्रांतिकारी उदघोषणा है कि तुम अभी जैसे हो ऐसे ही आनंद को उपलब्ध हो सकते हो, क्योंकि आनंद तुम्हारा स्वभाव है। इसे तुमने क्षण भर को खोया नहीं है। इससे तुम च्युत नहीं हुए हो। ये लहरें अभी शांत हो सकती हैं-यहीं! लहर के प्राणं अदृश्य हवा में हैं; वह जो अदृश्य हवा दौड़ रही है छाती पर, उसमें हैं।
तुम्हारी छाती पर कौन-सी अदृश्य हवा दौड़ रही है? उसी से तुम कंप रहे हो। वह हवा रुक जाये...और हवा तुम्हीं चला रहे हो। तुम्हीं उस हवा को प्राण दे रहे हो, गति दे रहे हो।
तृष्णा का अर्थ है : असंतोष। तृष्णा का अर्थ है : अतृप्ति। तृष्णा का अर्थ है : भविष्य, वर्तमान नहीं। जिसके जीवन से भविष्य विदा हो जाता है उसके जीवन से तृष्णा विदा हो जाती है। तृष्णा को फैलने के लिए भविष्य चाहिए।
देखो इस सत्य को! मैं जो कह रहा हूं, यह कोई सिद्धांत नहीं है-सीधा तथ्य है।
भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। जो अभी आया नहीं है, हो कैसे सकता है! आयेगा, तब होगा। जब होगा, तब होगा; अभी तो नहीं है। अतीत जा चुका है, भविष्य आया नहीं-इन दोनों के बीच में जो छोटा-सा क्षण है वर्तमान का, वही अस्तित्ववान है। उसके अतिरिक्त सब कल्पना है। अतीत है स्मृति, भविष्य है सपना। जो है अभी इस क्षण, वर्तमान का जो छोटा-सा क्षण, जो झरोखा खुलता है-वही है। तुम इसमें ही तल्लीन हो जाओ! इसमें ही डुबकी लगा लो। वही डुबकी तुम्हारी परमात्मा में डुबकी बन जाती है। शांत हो जाते हो-कुछ बिना किए! प्रसादरूप! ___ ऐसे ही मैं शांत हुआ, जैसा मैं तुमसे कह रहा हूं। ऐसे ही तुम शांत हो सकते हो। लेकिन भविष्य की आकांक्षा मत करो। भविष्य की आकांक्षा से तनाव पैदा होता है, खिंचाव पैदा होता है। आज तो दुखी रहते हो, कल की आशा खींचे रखती है। कल भी जब आयेगा आज की तरह आयेगा। कल तो कभी आता नहीं। जब आता है आज आता है। और तुमने एक गलत आदत सीख ली-आज दुखी होने की आदत सीख ली। तुम सदा ही दुखी रहोगे। क्योंकि जब भी आयेगा, आज आयेगा। और आज से तो तुम्हारे संबंध-नाते ही गलत हो गये-दुख के। जो नहीं आयेगा वह कल है-और कल तुम सुखी होना चाहते हो! और जो आता है वह आज है और आज तुम दुखी होने का अभ्यास कर रहे हो!
तृष्णा का अर्थ है : कल में होना; भविष्य में होना; जहां हो वहां न होना, कहीं और होना। और
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4