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है। और जो जागने लगा इस फैलाव में, उसका धर्म में प्रवेश हुआ। और जो जाग गया, वह परमात्मा के घर वापिस लौट गया।
तुम कहते होः 'बड़ी जहमतें उठायीं तेरी बंदगी के पीछे!'
इसमें थोड़ी भ्रांति है। तुमने बंदगी के पीछे जहमतें नहीं उठायीं। तुम जहमतें उठाना चाहते थे, इसलिए उठायीं। जहमतें उठाने में अहंकार को तृप्ति है। तुमने कष्ट झेले—प्रार्थना के लिए नहीं। क्योंकि प्रार्थना के लिए तो जरा-सा भी कष्ट झेलने की जरूरत नहीं है। प्रार्थना में तो कांटा है ही नहीं; प्रार्थना तो फूल है। प्रार्थना तो कमल जैसी कोमल है। जहमतें! प्रार्थना में! तो फिर स्वर्ग कहां होगा? फिर सुख कहां होगा? फिर आनंद कहां होगा?
नहीं, ये बंदगी के कष्ट नहीं हैं जो तुमने झेले। तुमने बंदगी के नाम से झेले हों, यह हो सकता है; लेकिन ये कष्ट अहंकार के ही हैं। तुमने परमात्मा को खोजने में तकलीफ पायी, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। परमात्मा को खोजने में कोई कैसे तकलीफ पायेगा! तुम खोजने में तकलीफ पाये। कोई धन खोजने में पा रहा है, कोई पद खोजने में पा रहा है, तुमने परमात्मा खोजने में पायी। तुम्हारे खोजने के अलग-अलग बहाने हैं, मगर खोजने का जो मजा है, जो अहंकार की तृप्ति है, उसके कारण तुमने जहमत उठायी।
'मेरी हर खुशी मिटी है तेरी हर खुशी के पीछे।'
उसकी खुशी का तो तुम्हें पता नहीं और तुम्हारे पास कभी खुशी थी जो मिटा दोगे? खुशी ही होती तो कौन परेशान होता परमात्मा को खोजने के लिए! तुमने सुखी आदमी को परमात्मा की याद भी करते देखा? मैं गवाह हूं, मैं कभी याद नहीं करता। याद किसलिए करनी है ? दुख...दुख में ही तुम याद करते हो। खुशी तो थी ही नहीं। कविताएं बना कर अपने आपको धोखा मत दो।
कविताएं सुंदर हो सकती हैं, इससे सच नहीं हो जातीं। सत्य निश्चित सुंदर है; लेकिन जो-जो सुंदर है, सभी सत्य नहीं है। सत्य महासुंदर है। लेकिन कोई चीज सुंदर है, इसीलिए सत्य मत मान लेना। क्योंकि तुम तो न-मालूम क्या-क्या चीजों को सुंदर मानते हो! तुम तो हड्डी-मांस-मज्जा की देह को भी सुंदर मान लेते हो, जो कि बिलकुल असत है। तुम तो आकाश में उठ गये इंद्रधनुष को भी सुंदर मान लेते हो, जो कि है ही नहीं! तुम तो रात सपने को भी सुंदर मान लेते हो-और हजार बार जाग कर पाया है कि झूठ है! तुम्हारे सौंदर्य में कुछ बहुत सत्य नहीं है, हो नहीं सकता! सत्य तुममें हो, तो ही हो सकता है।
कविता तो सुंदर चुनी है तुमने। वह भी तुम्हारी नहीं है, वह भी उधार है। 'मेरी हर खुशी मिटी है तेरी हर खुशी के पीछे।'
नहीं, परमात्मा तुमसे किसी तरह का बलिदान तो चाहता ही नहीं। और जिन्होंने तुम्हें सिखाया है कि परमात्मा बलिदान चाहता है, वे बेईमान हैं। उन्होंने परमात्मा के नाम से तुमसे किसी और वेदी पर बलिदान करवा लिया है। हजार लोग उत्सुक हैं तुम्हारा बलिदान हो जाये, तुम शहीद हो जाओ। कोई कहता है, राष्ट्र के नाम पर शहीद हो जाओ। कोई कहता है, धर्म के नाम पर शहीद हो जाओ, जेहाद में शहीद हो जाओ! अगर धर्म के युद्ध में मरे तो स्वर्ग मिलगा, बहिश्त मिलेगी! लेकिन धर्म का कोई युद्ध होता है ? अगर धर्म का भी युद्ध होता है, तो फिर अधर्म का क्या होगा? धार्मिक व्यक्ति का भी
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4