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और अंधेरा झूठ है। इनका पागलपन तो देखो। ___ अगर वस्तुतः ईश्वर है और संसार माया है तो तुम्हारे जीवन में स्वच्छंदता होगी; नियम नहीं हो सकता। यही तो अष्टावक्र का महासूत्र है कि सत्य की सुगंध स्वच्छंदता है। और ध्यान रखना, , स्वच्छंदता का अर्थ उइंडता नहीं है। स्वच्छंदता का अर्थ है : जो स्वयं के आंतरिक छंद से जीने लगा। अब कोई नियम नहीं रहे; अब बोध ही नियम है। अब जागरूकता ही एकमात्र अनुशासन है; अब बाहर का कोई अनुशासन नहीं है। अब ऐसा करना चाहिए और ऐसा नहीं करना चाहिए, ऐसी कोई मर्यादा नहीं है। अब तो जो उठता है, होता है। क्योंकि परमात्मा ही है तो अब तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना चाहिए। उसके अतिरिक्त कोई है ही नहीं।
सच तो यह है : जैसे ही तुम्हें लगा कि संसार माया है, तुम्हें यह भी पता चल जाता है कि तुम भी माया हो। तो अब कौन नियम पाले? कौन मर्यादा सम्हाले? अब तो वही है-वही अमर्याद, वही स्वच्छंद; उसका ही रास है।
यस्य बोधोदये तावत्स्वप्नवद् भवति भ्रमः। तब उसके बोधोदय पर, उसके जागरण पर...!
और इस 'बोधोदय' का क्या अर्थ हुआ? इसका अर्थ हुआः वह तुम्हारे भीतर सोया पड़ा है, जाग जाये बस, जरा करवट लेकर उठ आये बस! कहीं जाना नहीं है, थोड़ी जाग लानी है। जैसे हो तुम, ऐसे ही थोड़ी आंख खोलनी है, थोड़े होश से भरना है। ऐसे मूर्छित-मूर्छित, सोये-सोये न चलो, थोड़े जाग करे चलने लगो।
तस्मै सुखैकरूपाय नमः शांताय तेजसे। - 'उस एकमात्र आनंदरूप, शांत और तेजोमय को नमस्कार है।'
सुनते हैं? नमस्कार राम के लिए नहीं है, नमस्कार अल्लाह के लिए नहीं है, नमस्कार उस तेजोमय, आनंदरूप, शांतिधर्मा के लिए है। नमस्कार उस बोध के लिए, नमस्कार उस सूर्य के लिए, जिसके प्रगट होते ही सब अंधकार तिरोहित हो जाता है। ___ • अष्टावक्र के ये वचन किसी संप्रदाय और किसी धर्म के लिए नहीं हैं। अष्टावक्र के इन वचनों का कोई नाता किसी जाति. किसी देश. किसी समाज से नहीं है। और जब तक तमने अल्लाह को नमस्कार किया, तब तक तुम्हारा नमस्कार व्यर्थ जा रहा है—याद रखना। और जब तक तुमने राम को नमस्कार किया. तब तक तम हिंदओं को नमस्कार कर रहे हो. राम को नहीं। और जब तक तमने बुद्ध के चरणों में सिर झुकाये, तब तक तुम बौद्ध हो; धार्मिक नहीं। जिस दिन तुम्हारा नमस्कार जागरण मात्र को, बोध मात्र को, उस दिन तुम्हारा नमस्कार सारे अस्तित्व के प्रति हो जाएगा। उस दिन तुम्हारे ऊपर किसी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे की कोई सीमा न रह जाएगी। उस असीम को नमस्कार करते ही तुम भी असीम हो जाओगे। होना भी ऐसा ही चाहिए। असीम को नमस्कार करो और तुम सीमित रह जाओ तो नमस्कार व्यर्थ गया।
नमस्कार का अर्थ क्या होता है ?
नमस्कार का अर्थ होता है : झुक जाना; नमन; लीन हो जाना; अपने को डुबा देना। नमस्कार का अर्थ वही होता है जो अगर तुम नदी के साथ भागते हुए जाओ और जब नदी सागर में गिरती है,
'परमात्मा हमारा स्वभावसिद्ध अधिकार है।
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