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हैं, 'शायद!' आत्मा है? ये कहते हैं, 'शायद है, शायद नहीं है।'
महावीर का विचार बड़ा अदभुत है! महावीर यह कह रहे हैं, मुझसे निश्चय न मांगो। निश्चय तो तुम्हारे अनुभव से आयेगा। तुम उधार अनुभव मत मांगो। मैं तुम्हें निश्चित करने वाला कौन? और मैंने अगर तुम्हें निश्चित कर दिया तो मैं तुम्हारा दुश्मन।
मेरे पास लोग आ जाते हैं। एक सज्जन वर्षों से आते हैं। मैं उनसे कहता हूं : 'आते हैं आप, सुनते हैं, कभी ध्यान करें।' वे कहते हैं : 'क्या ध्यान करना? अब आपको तो मिल ही गया। तो जो आप कह देंगे, हम तो मानते ही हैं आपको। हमें कोई संदेह थोड़े ही है। जिनको संदेह हो वे ध्यान इत्यादि करें। हमें तो स्वीकार है। आपको हो गया। और आप जो कहते हैं, हम मानते हैं। इतना काफी है कि आपके चरण छू जाते हैं। आपका आशीर्वाद चाहिए, और क्या चाहिए।' ___मेरा निश्चय तुम्हारा निश्चय कैसे हो सकता है? मैंने जाना, यह तुम्हारा जानना कैसे बनेगा?
और मैंने जाना कि नहीं जाना, यह तुम कैसे जानोगे? मेरा दावा ही कुल भरोसे का कारण हो सकता है? लेकिन दावा...दावा सत्य का कोई होता ही नहीं। __ लेकिन तुम सत्य को खोजना नहीं चाहते। तुम मुफ्त चाहते हो। तुम श्रम नहीं उठाना चाहते। तुम कहते हो, कोई कह दे तो झंझट मिटे। कोई पक्का कह दे, प्रमाण दे दे, तो हम इस खोजबीन के उलझाव से बच जायें। ये पहाड़ी रास्ते और यह दूर की यात्रा और यह हमसे हो नहीं सकता। आप हो कर आ गये हैं, आप बता दें कि मानसरोवर कैसा है? सुंदर है, ठीक है! हमें आप पर श्रद्धा है। हम श्रद्धालु हैं।
. यह जगत श्रद्धालुओं से भरा हुआ है। इन झूठे श्रद्धालुओं के कारण जगत में धर्म नहीं है। कोई हिंदू बन कर बैठ गया है, कोई मुसलमान, कोई जैन, कोई बौद्ध, कोई ईसाई; सब श्रद्धालु बने बैठे हैं। मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, सब झूठों से भरे हैं। इनमें से कोई जाना नहीं चाहता। ईसाई कहते हैं, बस, जीसस ने कह दिया तो ठीक। अब कोई झूठ थोड़े ही कहेंगे! जैन कहते हैं, महावीर ने कह दिया तो बस हो गयी बात।
तुम क्या कर रहे हो? अपने को धोखा दे रहे हो। ___ परम ज्ञानी का तो कोई दावा नहीं है। परम ज्ञानी का तो आमंत्रण है। आग्रह नहीं है, अनाग्रह। परम ज्ञानी तो कहता है : 'देखो मुझे, आओ मेरे पास। चखो मुझे, स्वाद लो मेरा। और यात्रा को तत्पर हो जाओ।' परम ज्ञानी की मौजूदगी यात्रा पर भेजेगी तुम्हें, निश्चय नहीं दे देगी-उस यात्रा पर भेजेगी जहां अंतिम निर्णय में, अंतिम निष्कर्ष में निश्चय होगा। निश्चय तुम्हारे भीतर जन्मेगा।
कृतार्थोऽनेन—वही हुआ कृतार्थ। ज्ञानेन इति एवम्-जिसे 'मैं ज्ञानी हो गया' ऐसी बुद्धि भी नहीं पैदा होती। गलितधीः कृती-उसकी ऐसी बुद्धि भी गल गयी।
यह आखिरी बात गिर गयी। अब कोई भेद न रहा। ज्ञान-अज्ञान में भी भेद न रहा। संसार और मोक्ष में भी भेद न रहा। बंधन-मुक्ति में भी भेद न रहा। सब भेद गिर गये। अभेद उपलब्ध हुआ। अभेद में कैसा विचार? विचार में हमेशा भेद आ जाता है। जहां विचार आया, दीवाल उठी। जहां विचार आया, रेखा खिंची। भेद शुरू हुआ। निर्विचार में तो कोई भेद नहीं।
'जिसका संसार-सागर क्षीण हो गया है, ऐसे पुरुष में न तृष्णा है, न विरक्ति है। उसकी दृष्टि
शुन्य की वीणा : विराट के स्वर
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