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हूं और तुम गलत हो !
दूसरे को गलत सिद्ध करने में हम बड़े उत्सुक हैं। मैं तुमसे कह रहा हूं : दूसरे को दूसरे पर छोड़ो । अगर उसे मंदिर में बैठ कर मूर्ति पूजनी है, कहो कि प्रभु तुम्हारे मार्ग से तुम्हें मिले, निश्चित मिले। अगर मैं भी पहुंच सका अपने मार्ग से तो अंत में मिलेंगे। फिलहाल के लिए नमस्कार ! मगर मेरी शुभकामनाओं के साथ तुम यात्रा करो। और मेरे लिए भी प्रार्थना करना तुम्हारे प्रभु से, तुम्हारे मंदिर की मूर्ति से कि मैं भी पहुंच जाऊं ।
इतना उदार चित्त पृथ्वी पर पैदा हो तो पृथ्वी धार्मिक हो पायेगी। मैं चाहता हूं कि दुनिया में न हिंदू हों, न मुसलमान, न सिक्ख, न ईसाई, न पारसी – दुनिया में धार्मिक आदमी हों।
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दूसरा प्रश्न: मैंने सुना है कि साधक को साधना के चार चरणों से गुजरना पड़ता है: तरीकत, शरीअत, मारिफत और हकीकत । अंतिम है हकीकत, जहां साधक अपने सनम से मिलता है और सत्य के साथ उसका साक्षात्कार हो जाता है। भगवान, कृपया पहली तीन स्थितियों को समझायें ।
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शब्द सूफियों के हैं। बड़े महत्वपूर्ण हैं। बहुत सीधे - साफ भी हैं। पहला है तरीकत । तरीकत का अर्थ होता है: तौर-तरीका, विधि-विधान, उपाय, योग। तरीकत का अर्थ
होता है: कुछ करना है, तो उसे पा सकेंगे; बिना किये तो न मिलेगा। कुछ रास्ता चलना है; मार्ग खोजना है; पगडंडी बनानी है। कुछ जीवन में अनुशासन लाना है, व्यवस्था है। तरीकत का अर्थ होता है, उसके योग्य हो सकें, इसका तौर-तरीका सीखना है।
तुम किसी सम्राट के दर्शन करने जाते हो, तो तुम उसके दरबार का तौर-तरीका सीखते हो। ऐसे ही तो नहीं चले जाते। ऐसे ही तो स्वीकार न हो सकोगे। तुम सीखोगे कि कैसे वहां बैठेंगे, कैसे वहां उठेंगे, कैसे वहां झुकेंगे। सम्राट से मिलने जा रहे हो तो सम्राट के जीवन का जो ढंग है उस ढंग का कुछ स्वाद तुम्हें लेना होगा।
परमात्मा से मिलने चले हैं तो परमात्मा की थोड़ी-सी सुगंध अपने में बसा लें ।
तुम्हारे घर कोई मेहमान आता है तो तुम घर को तैयार करते हो । परमात्मा जैसे मेहमान को बुलाया है तो तैयारी तो करोगे न, कुछ इंतजाम तो करोगे, नयी चादर तो बिछाओगे पलंग पर, कमरे साफ तो
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4