Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 430
________________ यही तुम्हें सिखा रहा हूं कि किस भांति प्रेम बन जाओ, किस भांति शून्य बन जाओ। तुम शून्य बन जाओ तो परमात्मा तुम्हारे भीतर उतर आये। धन्य हैं वे जो मिट जाते हैं, क्योंकि प्रभु को पाने के वे ही अधिकारी हो जाते हैं। अभागे हैं वे जो नहीं मिट पाते, क्योंकि वे भटकेंगे और प्रभु को कभी पा न सकेंगे। मिटो-पाना हो तो। वर्षा होती है पहाड़ों पर, पहाड़ खाली रह जाते हैं, क्योंकि पहले से ही भरे हैं। झीलें भर जाती हैं, क्योंकि खाली हैं। तुम अगर खाली हाथ ले कर आ गये हो तो तुम भरे हाथ ले कर लौटोगे। भरे हाथ लाने की कोई जरूरत नहीं है। भरे हाथ आने की कोई जरूरत नहीं है। तो घबड़ाओ मत। शून्य ले आये, सब ले आये। प्रेम ले आये, सब ले आये। हरि ॐ तत्सत्! 414 अष्टावक्र: महागीता भाग-4

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