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___ मैंने कहा, ऐसा काम करो। तुम इसमें से कितना पैसा दान कर दोगे, वह तुम मुझसे कह दो। फिर पक्का मिलना है।
खुशी में उन्होंने कहा, आधा दान कर दूंगा। एक लाख की संभावना है। पचास हजार दान कर दूंगा। ____ मैंने कहा, पक्का हुआ! यह पचास हजार तुम मुझसे मत पूछना कि मैंने क्या किये। यह मैं इनको बांट दूंगा। कहीं भी कुछ भी उपयोग हो जायेगा। इसमें मेरा हिस्सा हो गया पचास हजार का।
मैं तो घर चला गया। यह तो मजाक की बात थी। वे ग्यारह बजे रात करीब घर आ गये। दरवाजे पर खटखट की। गर्मी के दिन थे। मैं ऊपर छत पर सोया था। मैंने नीचे झांक कर पूछा, क्या मामला है? उन्होंने कहा कि देखो, पचास बहुत ज्यादा हो जाएंगे! पच्चीस से न चलेगा? ____ अभी कुछ मिले नहीं! मैंने कहाः तुम ठीक से सोच लो; नहीं तो रात तुम फिर मुझे जगाओगे। पच्चीस में मैं राजी हूं, मगर तुम ठीक से सोच लो। उन्होंने कहाः अगर ऐसा ही है तो ऐसा है कि पहली दफे मुझे मिल रहा है। सच तो यह है कि पच्चीस भी मुझे बहुत कठिन पड़ेगा। तो मैंने कहा कि तुम पक्का करके सुबह मुझे बता देना। जितना तुम कहोगे, मैं राजी हो जाऊंगा। मगर अभी तुम कृपा करो और जाओ।
सुबह जब मैं निकला उनके घर के पास से तो उनकी पत्नी ने कहा कि वे रात भर सो नहीं सके। वे इसी उधेड़बुन में पड़े हैं। आपने भी कहां की...एक पहेली उनकी जान लिये ले रही थी; आपने
और यह अपना भाग्य जुड़वा दिया! अब वे इसमें पड़े हैं! पहेली की तो फिक्र ही नहीं है। अब तो फिक्र यह है कि वह पैसा कितना देना! उठ-उठ कर बैठ गये रात में, पूछने लगे मुझसेः तेरा क्या
खयाल है? ____मैंने उनसे कहा कि देखो, मैं तुम्हें मुक्त कर देता हूं। तुम लाख ही रखो। मगर मेरा भाग्य अलग हो जाता है, फिर तुम जानो। उन्होंने कहा ः इस बार भर। अगले महीने जोड़ लूंगा आपसे भाग्य। इस महीने तो ऐसा लग रहा है कि बिलकुल मिलने वाला है।
आदमी को जो नहीं मिला है, उसके साथ भी संबंध बनाये हुए है; उसके साथ भी सुख-दुख जोड़ा हुआ है। जो मिला है उसके साथ तो जोड़ा हुआ ही है। और मजा यह है कि अज्ञानी दुख ही पाता है। जो है उससे दुख पाता है; जो नहीं है उससे दुख पाता है। अज्ञानी के देखने का ढंग ही ऐसा है कि उससे दुख ही निर्मित होता है। वह सुखी तो कभी होता ही नहीं; सुख की कला ही उसे नहीं आती।
यहां अष्टावक्र महा आनंद की कला का सूत्र दे रहे हैं। वे कह रहे हैं: प्राप्त और अप्राप्त वस्तु का उपभोग करता है। जो मिला है उसमें भी आनंदित है: जो नहीं मिला है उसमें भी आनंदित है। दोनों में आनंदित है।
मैंने बार-बार तुम्हें कहा है। एक सूफी फकीर रोज कहता था। हे प्रभु, धन्यवाद! मेरी जो जरूरत होती है तू सदा पूरी कर देता है; तेरा बड़ा अनुगृहीत हूं! शिष्यों को जंचती नहीं थी यह बात, क्योंकि कई बार अनुगृहीत होने का कोई कारण ही न था। उनको लगता था, पुरानी आदत हो गयी है बूढ़े की, कहे चला जाता है।
एक दिन तो ऐसा हुआ कि शिष्यों से बर्दाश्त न हुआ। तीन दिन से भूखे थेः हज की यात्रा पर जा
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4