Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 418
________________ करीब-करीब लोग बेहोश हैं। कभी-कभी क्षण भर को तुम्हें होश आता है। उसी क्षण भर में तुम्हें याद आती है परमात्मा की। फिर होश खो जाता है। गुरजिएफ कहता था कि मैंने सैकड़ों लोगों के जीवन का अध्ययन किया तो पाया कि अगर एक आदमी के सत्तर साल के जीवन में सात क्षण के लिए भी होश आ जाता हो तो बहुत है। सात क्षण के लिए-सत्तर साल के जीवन में! एक क्षण के लिए भी होश आ जाये तो तुम अचानक पाओगेः अरे, तुम जिसे अब तक जीवन समझ रहे थे, वह सपना; और जो जीवन था वास्तविक, उस तरफ तुमने देखा ही नहीं! कंकड़-पत्थर बीनते रहे; हीरे-जवाहरात ऐसे ही पड़े रहे। कूड़ा-कर्कट इकट्ठा करते रहे; खजाना जो मिला था, वह ऐसा ही पड़ा रहा। गंवाते रहे जीवन को; कमाया कुछ भी नहीं। कमाना तो दूर, जो अपना था उसको भी नहीं भोगा। जो मिला ही था, उसका भी रस न लिया, स्वाद न लिया। बुद्ध के पास एक दिन एक आदमी आया और उसने कहा कि मुझे बड़ी दया आती है लोगों पर, मैं कुछ सेवा करना चाहता हूं, आप मुझे निर्देश दें। कहते हैं, बुद्ध उसकी तरफ गौर से देखते रहे और उनकी आंख में एक आंसू टपक आया। वह आदमी तो घबड़ा गया और उसने कहा कि आपकी आंख में आंसू, बात क्या है! आप मुझमें क्या देख रहे हैं? आप ऐसी क्या तलाश कर रहे हैं मुझमें? वह थोड़ा बेचैन भी हो गया। बुद्ध ने कहा कि मुझे तुम पर दया आती है। तुम दूसरों पर दया करने चले हो। तुमने अभी अपने पर भी दया नहीं की। तुम पहले अपने पर तो दया करो! वह आदमी कहने लगाः क्या मतलब आपका? मेरे पास सब है-धन-संपत्ति, सुविधा, घर-द्वार, मकान। मैं सेवा कर सकता हूं, मैं दान भी दे सकता हूं। आप जरा आज्ञा दें। बुद्ध ने कहाः उसकी मैं बात ही नहीं कर रहा; वह सब पड़ा रह जायेगा। तुम्हें अपनी भीतरी. संपत्ति का कुछ पता है? मुझे उस पर दया आ रही है कि यह आदमी इतनी भीतर संपत्ति लिए बैठा है और ऐसे ही मर जाएगा! ____ मैं भी तुमसे कहता हूं: मुझे तुम पर दया आ रही है। इसलिए नहीं कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है; इसलिए कि तुम्हारे पास सब कुछ है और तुम पीठ किए बैठे हो। जो तुम्हारा है उस पर भी तुमने दावा नहीं किया। जिसके तुम मालिक हो, उसको भी नहीं देख रहे। जो बस मांगने से तुम्हारा हो सकता है, जरा आंख खोलने से तुम्हारा हो सकता है; जो साम्राज्य तुम्हारा है; जो प्रभु का साम्राज्य तुम लेकर ही पैदा हुए थे—वह ऐसा ही पड़ा सड़ रहा है और तुम क्षुद्र के पीछे भागे जा रहे हो। विराट को छोड़ कर क्षुद्र के पीछे भाग रहे हो। सार्थक को छोड़ कर व्यर्थ के पीछे भाग रहे हो। आत्मा को खो कर तुम हो क्या गये हो? सिर्फ छाया मात्र! जर्मनी में एक लोक कथा है कि एक आदमी पर एक भूत नाराज हो गया, एक प्रेत नाराज हो गया और उस प्रेत ने अभिशाप दे दिया उस आदमी को कि आज से तेरी छाया खो जायेगी। वह आदमी तो हंसने लगा। उसने कहा कि यह भी कोई अभिशाप हुआ, इससे मेरा क्या बनेगा-बिगड़ेगा? उसने कहा तू देखना। उस आदमी ने बहुत सोचाः इससे मेरा क्या बनेगा-बिगड़ेगा? छाया से कुछ ले-दे भी नहीं रहा था। काम भी क्या था छाया का! लेकिन आया शहर में तो पता चला झंझट हो गई। गांव में खबर फैल गई। लोग देखने लगे, इसकी छाया नहीं बनती! उन्होंने कहाः यह तो खतरा है। ऐसा 402 अष्टावक्र: महागीता भाग-4

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