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होता है। किसी ने उसे घेरा अपनी बाहों में, प्रफुल्लित क्यों न हो! लेकिन लता सहारे होती है। वृक्ष अपने सहारे होता है।
पुरुष चित्त का लक्षण है अपने सहारे होना। इसलिए पुरुष चित्त ने जो धर्म पैदा किये हैं उन धर्मों । में साक्षी पर जोर है-सिर्फ जाग जाओ! कृष्णमूर्ति जिस धर्म की बात कर रहे हैं वह पुरुष चित्त का धर्म है-सिर्फ जाग जाओ। कुछ और नहीं। होश से अपने भीतर केंद्रित हो कर खड़े हो जाओ। अष्टावक्र कहते हैं : स्वस्थ हो जाओ, स्वयं में स्थित हो जाओ। कहीं जाना नहीं। कहीं झुकना नहीं। कोई मंदिर नहीं, कोई मूर्ति नहीं, कोई पूजा नहीं, कोई प्रार्थना नहीं। लेकिन यह बात स्त्री चित्त को तो बड़ी बेबूझ मालूम पड़ेगी। यह तो धार्मिक ही न मालूम पड़ेगी। स्त्री चित्त को तो इसमें कुछ रस आता मालूम न पड़ेगा। स्त्री तो मीरा की तरह नाचना चाहेगी। स्त्री तो लता है, तो कृष्ण के वृक्ष पर छा जाना चाहेगी। वह तो किसी के सहारे डूब जाना चाहेगी। तो स्त्री चित्त के लिए अलग भाषा है।
इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत! की कमल ने सूर्य-किरणों की प्रतीक्षा ली कुमुद की चांद ने रातों परीक्षा इस लगन को प्राण, पागलपन कहो मत! इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत! मेह तो प्रत्येक पावस में बरसता पर पपीहा आ रहा युग-युग तरसता प्यार का है, प्यास का क्रंदन कहो मत! इस पुरातन प्रीति को नूतन कहो मत!
प्यार का है. प्यास का क्रंदन कहो मत। स्त्री के प्यार से ही उठती है प्रार्थना। स्त्री के प्यार से ही उठती है पूजा। स्त्री की प्यार की ही सघनीभूत स्थिति है परमात्मा। ____ इन दोनों में मैं नहीं कह रहा हूं कि इसको चुनो और इसको छोड़ो। मैं इतना ही कह रहा हूं कि जो तुम्हें रुचिकर लगे, जो मन भावे, जो तुम्हें रुचे, जो तुम्हें स्वादिष्ट मालूम हो, उसमें डूब जाओ। अगर स्त्री-शरीर में हो तो इस कारण यह मत सोचना कि तुम्हें भक्ति में ही डूबना है। जरूरी नहीं है।
कश्मीर में एक स्त्री हुई, लल्लाह। कश्मीर में लोग लल्लाह का बड़ा आदर करते हैं। कश्मीर में तो लोग कहते हैं, कश्मीर दो नामों को ही जानता है : अल्लाह और लल्लाह। लल्लाह बड़ी अदभुत
औरत थी। शायद मनुष्य-जाति के इतिहास में महावीर से टक्कर ले कोई स्त्री, तो लल्लाह। वह नग्न रही। पुरुष का नग्न रहना तो इतना कठिन नहीं। बहुत पुरुष रहे। यूनान में डायोजनीज रहा। और भारत में बहुत पुरुष नग्न रहे हैं। नंगे साधुओं की बड़ी परंपरा है, पुरानी परंपरा है। लेकिन लल्लाह अकेली औरत है जो नग्न रही। बड़ी पुरुष चित्त की रही होगी। स्त्रैण भाव ही न रहा होगा।
स्त्री तो छुई-मुई होती है। स्त्री तो छुपाती है, अवगुंठित होती है। स्त्री तो अपने को प्रगट नहीं करना चाहती। स्त्री को प्रगट करने में लाज आती है। स्त्री तो बूंघट में होना चाहती है। चाहे ऊपर का
तु स्वयं मंदिर है
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