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गाली। ठीक हो तो इस आदमी ने बड़ी कृपा की, कष्ट उठाया और तुम्हारा सत्य तुम्हें बताने आया। गलत हो तो यह आदमी बेचारा नाहक झंझट में पड़ा, नाहक जनता की सेवा कर रहा है! कोई इसकी सेवा चाहता भी नहीं, मगर यह मेहनत कर रहा है। तो धन्यवाद दे कर अपने रास्ते पर बढ़ जाना, कि भाई तुम अपनी जनसेवा जारी रखो; मगर तुम जो कहते हो वह मुझ पर लागू नहीं होता, हो सकता है किसी और पर लागू होता हो, या हो सकता है तुम्हें लगता हो कि मुझ पर लागू होता हो, फिर भी तुमने कृपा की, इतना श्रम उठाया, उसके लिए धन्यवाद है। तब तुम अचानक पाओगे तुम्हारे जीवन में होश की एक किरण आई। और उस होश की किरण के साथ ही अहंकार विदा होने लगता है।
तीसरा प्रश्नः एक बार आपके चित्र के सामने बैठे-बैठे मन में कई तरह के द्वंद्व-जाल पैदा हुए। एक भाव आया कि यह तो खतम नहीं होगा, खोपड़ी चलती ही रहेगी, इसलिए आप ही सम्हालें। तत्क्षण एक हलकापन महसूस ो सा ही सरल है। इतनी ही सरल है हुआ और मैं मस्ती में डूब गया। और तब | बात। खोपड़ी चलाते रहो तो चलती आपका वह गंभीर मुद्रावाला चित्र खिलखिला रहेगी। खोपड़ी तुम्हारी है। तुम इसको सहयोग कर हंस पड़ा। आज तक उसका स्मरण बना देते हो तो चलती है; पैडल मारते रहते हो तो है। भगवान, आपको प्रणाम! __ चलती है। तुम एक बार भी तय कर लो कि
ठीक, हो गया बहुत; छोड़ दो गुरु पर, छोड़ दो प्रभु पर, छोड़ दो किसी पर-कि अब ठीक है, चलाना हो तो चला, न चलाना हो तो न चला; लेकिन मैं अब इसमें उत्सुक नहीं हूं; न इसके पक्ष में हूं न इसके विपक्ष में हूं। यही बात महत्वपूर्ण है। जब तक तुम विपक्ष में हो, तब तक तुम्हारी खोपड़ी चलती ही रहेगी। क्योंकि विपक्ष का भी मतलब यह होता है कि तुम अभी रस ले रहे हो।
सच तो यह है, विपक्ष से खोपड़ी और भी चलती है। अगर तुम्हारे मन में कोई विचार आता और तुम चाहते हो यह न आये तो और भी आयेगा। तुम्हारे न लाने की चेष्टा बार-बार स्मरण बन जायेगी। तुम चाहते हो न आये, हट जाये-इसी से घाव पैदा हो जायेगा। और-और आयेगा, बार-बार आयेगा। तुम जिस विचार से मुक्त होना चाहोगे वही विचार तुम्हारा पीछा करेगा। इसके पीछे गणित है। मनस्विद कहते हैं : विपरीत का नियम।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4