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में भाव उठा कि सामान्य से नीचे गिर गये। मैंने तुम्हें इतना मुक्त किया है कि मैं तुमसे कहता हूं तुम गिर सकते ही नहीं, गिरने का कोई उपाय नहीं है।
'सामान्य' किसको कहते हो? ये जो अनंत अनंत कोटि लोग हैं, इनके प्रति तुम्हारे मन में बड़ी गहन निंदा है। क्यों तुम चाहते हो कि इनसे तुम विशिष्ट हो जाओ ? यह विशिष्ट होने की आकांक्षा अहंकार ही तो है, और क्या है ? इस विशिष्ट होने की आकांक्षा में तुम अध्यात्म समझे बैठे हो, कि संन्यास तुमने समझा है!
मेरे पास आते हैं पुराने ढब के संन्यासी । वे कहते हैं: यह आप क्या कर रहे हैं, सामान्य आदमियों को संन्यास दिए दे रहे हैं !
मैंने कहा: परमात्मा नहीं झेंपता सामान्य आदमी बनाने से तो मैं क्यों परेशान होऊं संन्यास देने से? और परमात्मा सामान्य आदमी ज्यादा बनाता है, तुम देख रहे हो। तुम्हारे जैसे विशिष्ट आदमी तो कभी-कभी बनाता है और मुझे शक है कि वह बनाता भी है। क्योंकि मैंने अभी तक कोई संन्यासी पैदा होते नहीं देखा, सब सामान्य आदमी पैदा होते हैं; संन्यासी तो तुम बन जाते हो ।
अब्राहम लिंकन जब अमरीका का प्रेसिडेंट हुआ, उसका चेहरा बहुत सुंदर नहीं था, घरेलू ढंग का था। किसी ने पूछ लिया उससे कि तुम अमरीका के प्रेसिडेंट भी हो गये, लेकिन तुम्हारा चेहरा इतना कुरूप क्यों है ? अब्राहम लिंकन ने कहा कि जहां तक मैं समझता हूं, परमात्मा कुरूप आदमियों को पसंद करता है, क्योंकि सुंदर कम बनाता और कुरूप ज्यादा बनाता है। यह परमात्मा की पसंदगी मालूम होती है। इतना ही कह सकता हूं, और तो मुझे कुछ पता नहीं। लाख में एकाध को सुंदर बना है, बाकी को तो साधारण बनाता है। तो परमात्मा साधारण को पसंद करता है, इसीलिए ।
मगर सुंदर तो शायद परमात्मा बनाता भी होगा; तुमने किसी को देखा कि परमात्मा किसी को संन्यासी बनाता है? सब सामान्य बच्चों की तरह पैदा होते हैं। बुद्ध हों कि महावीर हों कि हों कृष्ण कि क्राइस्ट हों, सब सामान्य बच्चों की तरह पैदा होते हैं।
परमात्मा सामान्य का प्रेमी है— सहज का, साधारण का । आदमी का अहंकार है जो विशिष्ट होना चाहता है।
झेन फकीर रिझाई अपने झोपड़े में बैठा था और एक शिष्य ने उससे कहा कि तीन साल आपके चरणों की सेवा करते हो गये, अभी तक मैं आप जैसा क्यों नहीं हो पाया ? रिंझाई ने कहा : देखो, सामने देखो। चीड़ के दो वृक्ष खड़े हैं; एक छोटा है, एक बड़ा है। एक को परमात्मा ने ऐसा बनाया, एक को परमात्मा ने ऐसा बनाया। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि मैंने इन दोनों वृक्षों में कभी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं देखी। छोटे ने कभी कहा नहीं कि मैं छोटा क्यों बनाया गया और बड़े ने कभी अकड़ कर नहीं कहा कि ऐ छोटे, अपनी हैसियत से रह! मुझे देख, मैं कितना बड़ा हूं! इनमें मैंने कभी विवाद नहीं सुना। मुझे मेरे जैसा बनाया, तुम्हें तुम जैसा बनाया ।
छोटे-बड़े की धारणा आदमी की है। साधारण- असाधारण की धारणा आदमी की है। सब एक जैसे हैं। सब एकरस हैं। अगर एक ही ब्रह्म सब में विराजा है, तो कौन विशिष्ट, कौन सामान्य ?
यह तुम्हारे भीतर जो भाव है कि कभी-कभी सामान्य सतह से भी नीचे गिर जाता है, तुम कुछ धारणायें लेकर चल रहे हो कि संन्यासी को ऐसा होना चाहिए; संन्यासी को कभी क्रोध नहीं करना
संन्यास - सहज होने की प्रक्रिया
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